युवाउमंग में पढ़िए

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

विविध

पढ़कर बन रहे हैं मीडिया वर्कर
संजय तिवारी सौजन्य: www.visfot.com

कोई 200 से ज्यादा कालेज या विश्वविद्यालय ऐसे हैं जो यूजीसी द्वारा मान्यता लेकर पत्रकारिता की पढ़ाई करवा रहे हैं. इसके अलावा लगभग 500 अन्य संस्थान हैं जो अपने दम पर पत्रकारिता की डिग्री बांट रहे हैं. लेकिन चौंकानेवाली बात यह है कि पत्रकारिता के संस्थान संख्या में जितने बढ़े हैं पत्रकारिता में उसी अनुपात में गिरावट आयी है. इन दोनों बातों का कोई संयोग होगा ऐसा नहीं कह सकते लेकिन पत्रकारिता को पढ़ाई बनानेवाली मानसिकता के बारे में आप जरूर सवाल कर सकते हैं. दुनिया में दो तरह की विचारधाराएं काम करती हैं. एक जो विकेन्द्रीकरण और वास्तविक लोकतंत्र में विश्वास करती है और दूसरी वह जो केन्द्रीकृत व्यवस्था को पसंद करती है और छद्म लोकतंत्र के सहारे अपना विस्तार करती है.
आजकल इसी छद्म लोकतांत्रिक प्रणाली का जोर है. अपने मूल में यह न केवल अति केन्द्रित है बल्कि यह प्रणाली कुछ लोगों की इच्छाओं का विस्तार मात्र है. आज व्यापार से लेकर शिक्षा तक जो कुछ हमारे सामने दिखाई दे रहा है वह इसी केन्द्रित प्रणाली से उपजा है. इसलिए जब से भूमंडलीकरण का दौर शुरू हुआ उसके बाद ही पेशेवर पढ़ाई पर जोर अचानक बहुत बढ़ गया. इतना बढ़ गया कि हमने यह कल्पना करना ही छोड़ दिया कि एजूकेशन एक सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था है और यह व्यक्ति की निजी अभिरुचि और स्वभाव के अनुसार एक स्वाभाविक प्रक्रिया में ढलता है. लेकिन दुनिया की केन्द्रीय प्रणाली ऐसा नहीं मानती. उसका मानना है कि परिवार और समाज जैसी कोई व्यवस्था हो ही नहीं सकती इसलिए जो कुछ करना है वह या तो राज्य करे या फिर बाजार उसे अपने मुताबिक करेगा.
भूमंडलीकरण के कारण पैसा बढ़ गया हो ऐसा नहीं है. हां, पैसे का चलन बढ़ गया है. पैसा ऐसी मदों पर खर्च होने लगा है जिनके बारे में कल तक हम सोच भी नहीं सकते थे. इसे पूंजी का फैलाव भी कह सकते हैं. पूंजी का यह फैलाव जैसे-जैसे बढ़ रहा है वैसे-वैसे परिवार नाम की इकाई टूट रही है. परिवार नाम की यह इकाई अकेले नहीं टूटती. इस टूटन का असर समाज और उसकी व्यवस्थाओं पर भी होता है. आर्थिक प्रणाली बदल गयी. रोजी-रोजगार के तरीकों में व्यापक फेरबदल चल रहा है. और यह फेरबदल इतना तेज है कि परिणाम पाने के लिए कोई एक शताब्दी का इंतजार नहीं करना होता. बदलाव के लिए एक दशक बहुत बड़ा समय का अंतराल होता है.
जब रोजी-रोजगार, जीवनशैली, जरूरतें और समस्याओं ने अपना स्वरूप बदल लिया तो पत्रकारिता से यह उम्मीद करना कि वह पुराने तरीकों और उपकरणों से अपना काम करती रहे, यह थोड़ा ज्यादती होती. नये तरह की पत्रकारिता की जरूरत ने लोगों के मन में यह बैठा दिया कि पत्रकारिता भी वैसा ही प्रोफेशनल कोर्स होना चाहिए जैसे कि कोई एमबीए या फिर बीसीए, एमसीए. यह मानसिकता एकांगी नहीं बनी. इस मानसिकता के पीछे हमारी आर्थिक प्रणाली में आये व्यापक बदलाव थे जिनका समाज पर असर हो रहा था. अब पत्रकारिता करनेवाले अखबारों की जरूरत शायद नहीं रह गयी है. अब सूचना देने वाले ऐसे माध्यमों की आवश्यकता है जो समाज के टूटते रिश्तों के बीच संवाद का काम कर सकें. ज्ञान और जानकारियों के रीते होते सामाजिक गागर में सूचनाओं से लबालब औजार चाहिए अखबार नहीं. जाहिर है ऐसे में पत्रकारिता की पुरानी अवधारणा को तो बिखरना ही था.
अब पत्रकारिता मीडिया वर्किंग में तब्दील हो गयी है. पत्रकार भी धीरे-धीरे मीडिया वर्कर के रूप में बदलते जा रहे हैं. पुरानी पीढ़ी के कुछ लोग जब तक हैं तब तक विरोध के छुट-पुट स्वर सुनाई देते रहेंगे. लेकिन ऐसे स्वर कोई लंबे समय तक नहीं रहने वाले. संस्थानों में फीस भरकर जो युवक/युवती मीडिया में पहुंचता है वह सीखनेवाला नहीं बल्कि सिखानेवाली मानसिकता से पहुंचता है. उसे लगता है कि उसने अपना कोर्स पूरा कर लिया अब सीखने को है क्या? अपने से थोड़ा भी ऊपर कोई है तो वह उसे बेदखल करके अपनी नयी सोच को स्थापित करना चाहता है. इसमें अन्यथा कुछ भी नहीं है. पेशेवर शिक्षा का यह अनिवार्य दोष है. जब हम किताबी पढ़ाई को व्यावहारिक ज्ञान के ऊपर हावी करने लगते हैं तो केवल ज्ञान ही पीछे नहीं छूटता पूरी प्रणाली आपदाग्रस्त हो जाती है.
मीडिया वर्करों की बढ़ती फौज के बीच किसी दिन पत्रकारिता की अर्थी निकल जाए तो इसमें हैरान होने की जरूरत नहीं है. वैसे भी अब इंजीनियरिंग, विज्ञान, वाणिज्य, कला सब कुछ तो स्कूलों कालेजों के भरोसे ही चल रहा है. कितने लोगों को इस बात का अंदाज होगा कि स्कूल ही शिक्षा के एकमात्र माध्यम नहीं होते. यह बात थोड़ी अटपटी लग सकती है लेकिन उन्नत समाज में स्कूल नहीं होते. स्कूल तो निम्नतर समाज के लिए जरूरी हैं. उन्नत समाज परंपरा में जीता है. वह अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी परंपरा में आविष्कार और परित्याग दोनों का समावेश रखता है. संयोग से भारत ऐसा ही देश रहा है. यहां पढ़ाई से नहीं बल्कि प्रतिभा से पेशे के चयन की आजादी रही है. लेकिन जब पूरा समाज ही भ्रंस पर जा खड़ा हुआ हो तो पत्रकारिता में पढ़ाई और पढ़ाई से पैदा हुए क्षरण को कोई रोक नहीं सकता.
इस बात को समझना होगा कि पत्रकारिता में आये क्षरण का एक बड़ा कारण पत्रकारिता की पढ़ाई भी है. आज कोई समझे न समझे एक दिन इस बात का अंदाज लोगों को होगा. पत्रकारिता संस्थानों से जितना पढ़ा-लिखा मीडिया वर्कर निकलता है उससे ज्यादा प्रतिभावान लोग बाहर ही रह जाते हैं. वैसे भी पढ़ने पर जो पैसा खर्च करता है उसे उस पैसे का रिटर्न चाहिए. जिन्हें पत्रकारिता करनी हो वो करें. मीडिया संस्थानों से निकलनेवाले लड़कों को नौकरी और स्टार रिपोर्टर का तमगा मिनट भर के अंदर चाहिए. कोई अपवाद होगा तो कह नहीं सकते लेकिन ज्यादातर लोगों में यही प्रवृत्ति होती है. वैसे भी 2012 तक मीडिया इंडस्ट्री एक लाख करोड़ का धंधा होगी. उस धंधे को चलाए रखने के लिए बाजार को इंसानी उपकरण चाहिए पत्रकार नहीं, इसलिए बड़ा सवाल तो यह है कि क्या पत्रकारिता जैसी बातें उसके बाद भी जीवित रहेंगी?
विस्फोट फोरम में भी यह बहस उपलब्ध है जहां आप अपने विचार रख सकते हैं।
09 June, 2008
प्रस्तुति: टी.सी. चन्दर

सोमवार, 26 मई 2008

खानपान


गर्मी के मौसम में अपनाएं गुणकारी शर्बत

गर्मी के मौसम के दस्तक देने से पहले ही शीतल पेय निर्माता विशेष रूप से बच्चों की कोमल भावनाओं को ध्यान में रखकर कुटिलतापूर्ण विज्ञापन अभियान शुरू कर देते हैं। इन विज्ञापन अभियानों को लुभावना और प्रभावशाली बनाने के लिए मुहमांगी कीमत पर लोकप्रिय फिल्मी सितारों या क्रिकेट खिलाड़ियों को अनुबन्धित कर लेते हैं। धन के लालच के वशीभूत ये लोकप्रिय हस्तियां अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए लोगों की भावनाओं का शोषण करती हैं। वे अपने इस कुकृत्य से देशवासियों और देश का बहुत बड़ा नुकसान करते हैं, वह भी पूरे होशोहवास में और सोचसमझकर।

भारीभरकम विज्ञापन बजट वाले गैर जरूरी तथाकथित तूफानी ठण्डे पेयों के लुभावने और हमारा स्टेटस तय करने वाले प्रिंट तथा इलैक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से पेश किए जाने वाले विज्ञापन अभियानों ने बहुत नुकसान किया है। दूषित और हानिकारक रासायनिक पदार्थों से तैयार किए गये अनेक शीतल पेय बाजार में टिके रहने के लिए भारी मारामारी कर रहे हैं। लोग झूठी छवि और आधुनिक दिखने के फेर में भ्रमित हो इन घटिया शीतल पेयों को मुंह से लगाए हुए हैं। यहां के लोगों को अपने रहस्यमय फार्मूलों से तैयार किये गए शीतल पेयों का आदी बनाने में अनेक भारतीय और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां एकदूसरे से होड़ में लगी हुई हैं। इस होड़ का बच्चे आसान शिकार हो रहे हैं जबकि ये शीतल पेय बच्चों की हड्डियों, सम्पूर्ण स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके शारीरिक और मानसिक विकास की दृष्टि से हितकर नहीं हैं।
अपने-अपने शीतल पेयों का बाजार बढ़ाने में जुटी इन कम्पनियों का जन स्वास्थ्य से कोई सरोकार नहीं है और न ही सरकार को इससे कुछ लेनादेना है। हमें ही इस मामले में पहल कर अपना और बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सही कदम उठाने की पहल करनी चाहिए। इन हानिकारक पेयों का उपयोग स्वयं एकदम बन्द करते हए बच्चों को भी प्रेरित करना होगा। दावतों में इनके उपयोग से विशेष रूप से बचना होगा। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले इन शीतल पेयों में उपस्थित कीटनाशकों की बात जाहिर होने पर काफी हंगामा मचा था। दक्षिण भारत में किसानों ने अपनी फसल की कीटों से बचाव के लिए इन्हीं शीतल पेयों का उपयोग किया और इन्हैं काफी कारगर पाया। कीमत की दृष्टि से ये कीटनाशक काफी सस्ते सिद्ध हुए। अनेक लागों ने इन शीतल पेयों का उपयोग अपने घर के शौचालय और स्नानघर साफकर चमकाने में किया और उन्हैं सुखद परिणाम मिले।
दरअसल ये शीतल पेय बर्फ या फ्रिज में रखे जाने के कारण ठंडक का सिर्फ एहसास या भ्रम पैदा करते हैं, वास्तव में किसी भी प्रकार से ये गुणकारी या शरीर को आंतरिक रूप से तरावट, राहत या ठंडक प्रदान करने वाले पेय नहीं हैं। यही नहीं, इनका सेवन करने-कराने के फेर में जेब से भी काफी धन खर्च हो जाता है और वह भी बिना किसी लाभ के। अनेक लोग व्रत-उपवास में इन पेयों का सेवन करते हैं जो ठीक नहीं है। इन शीतल पेयों में घटिया रंग, रसायन आदि का उपयोग किया जाता है, बोतलों की सफाई भी संदिग्ध होती है और निर्माण तिथि का भी सही पता नहीं होता। इन शीतल पेयों में पशुओं की हड्डी, चर्बी, रक्त आदि के उपयोग को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। कृत्रिम सस्ती मिठास, रंग, कैंसर कारक ब्रोमिनेटेड वेजीटेबल ओयल (बी.वी.ओ.) आदि के चलते ये पेय किसी भी स्थिति में मानव के लिए निरापद नहीं कहे जा सकते। कुछ समय पहले हमारे देश में बी.वी.ओ. को लेकर काफी शोर मचा था। सरकार ने इसके प्रयोग पर रोक भी लगा दी थी पर हमारे यहां भ्रष्टाचार और प्रशासनिक सुस्ती के चलते कुछ भी चलता रह सकता है। आम आदमी के पास खा़ पदार्थों की जोच-पड़ताल का कोई तरीका ही नहीं है इस प्रकार इन पेयों पर रत्तीभर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। शीतल पेय निर्माता अपने असीमित लाभ की खतिर कुछ भी कर सकते हैं और वे सक्षम हैं।
गर्मी के मौसम के दस्तक देने से पहले ही शीतल पेय निर्माता विशेष रूप से बच्चों की कोमल भावनाओं को ध्यान में रखकर कुटिलतापूर्ण विज्ञापन अभियान शुरू कर देते हैं। इन विज्ञापन अभियानों को लुभावना और प्रभावशाली बनाने के लिए मुहमांगी कीमत पर लोकप्रिय फिल्मी सितारों या क्रिकेट खिलाड़ियों को अनुबन्धित कर लेते हैं। धन के लालच के वशीभूत ये लोकप्रिय हस्तियां अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए लोगों की भावनाओं का शोषण करती हैं। वे अपने इस कुकृत्य से देशवासियों और देश का बहुत बड़ा नुकसान करते हैं, वह भी पूरे होशोहवास में और सोचसमझकर।
अब हमें स्वयं अपना और अपने नौनिहालों के हित को ध्यान में रखते हुए सही तरीका अपनाना चहिए जिससे हमारी जेब भी हलकी न हो और गुणकारी शीतल पेयों के उपयोग से स्वास्थ्य को लाभ भी मिले। घर या बाहर रहते हुए हम ऐसे शीतल पेय अपना सकते हैं जो मूल्य की दृष्टि से मंहगे नहीं पड़ते और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं। इनमें से एकाधिक शीतल पेय तैयार किए-कराए जा सकते हैं। ठंडक और ताजगी देने वाले ये पेय आसानी से तैयार हो जाते हैं। कुछ गुणकारी शर्बत या शीतल पेय बनाने की विधियां यहां प्रस्तुत हैं-
नींबू का शर्बत या शिकंजी- आसानी से उपलब्ध नींबू के गुणों से सभी परिचित हैं। मध्यम आकार के पतले छिलके वाले 20 नींबुओं का रस निकालकर उसमें 500 ग्राम मिश्री मिलाकर गाढ़ा होने तक उबालें और ठंडा होने पर कांच की बोतल में भरकर रख दें और आवशयअकतानुसार पानी और बर्फ मिलाकर पिएं-पिलाएं। नींबू की शिकंजी भोजन में अरुचि, मंदाग्नि, उल्टी, पिŸा जनित सिरदर्द आदि में लाभदायक होने के साथ-साथ भूख भी बढ़ाती है।
गुलाब का शर्बत- गुलाबजल या गुलाब की पंखुड़ियोँ से निकाले गये अर्क में मिश्री डालकर उसका पाक बना लें और आवश्याकता पड़ने पर ठंडा पानी मिलाकर पिएं-पिलाएं। यह शर्बत सुगंधित होने के साथ-साथ शरीर की गर्मी को भी नष्ट करता है। गर्मी के मौसम में यह एक अच्छा स्वास्थ्यकर पेय है।
इमली का शर्बत- साफ और अच्छी इमली 1 किग्रा. लेकर 2 लीटर पानी में एक पत्थर या चीनी मिट्टी के बर्तन में 12 घंटे के लिए पतले कपड़ से ढंककर छोड़ दें। फिर इमली को साफ हाथों से मसल-मसलकर पानी के साथ् एकरस कर लें और बीजों को निकाल दें। अब स्टेनलैस स्टील के बर्तन में छानकर उबाल आने तक गर्म करें। इसके बाद 750 ग्राम चीनी डाल दें। 3 तार की चाशनी बनने पर आग से उतार कर ठंडी होने दें। इसे चौड़े मुंह की कांच की बोतल या बर्तन में भरकर रख दें। आवश्यकता होने पर उपयुक्त मात्रा लेकर उसमें ठंडा पानी और बर्फ मिलाकर उपयोग में लाएं।
यह शर्बत कब्ज और पित्त में लाभ पहुंचाता है। गर्मी के दिनों में सुबह पीने से लू लगने का डर नहीं रहता।
इमली की ही तरह कैथ (कबीट) का शर्बत भी बनाया जा सकता है। यह शर्बत शरीर की गर्मी, पित्त शामक और रुचिकर होता है।
मुनक्का का शर्बत- मुनक्के 250 ग्राम मात्रा में लेकर उनके बीज निकाल लें और नींबू या बिजौरे (बड़े खट्टे नींबू) के रस में पीस लें। उसमें लगभग 100 मिली. अनार का रस मिला दें। अब उसमें स्वादानुसार काला नमक, पिसी इलायची, पिसी काली मिर्च, भुना पिसा जीरा, थोड़ी पिसी दालचीनी व अजवायन डालकर उसमें 200-250 ग्राम शहद भलीभांति मिला दें। आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर उपयोग में लाएं।
यह शर्बत मंदाग्नि और अरुचि में अत्यंत गुणकारी होता है।
कच्चे आम का शर्बत या पना- पना बनाने के लिए कच्चे आम या अमिया छीलकर पानी में उबाल लें फिर ठंडे पानी में अमिया मसलकर एकसार कर लें। इसमें स्वादानुसार काला नमक, सादा नमक, भुना पिसा जीरा और चीनी मिलाकर पिएं। इसमें कुटी बर्फ मिलाई जा सकती है। गर्मी से राहत दिलाने वाला यह शर्बत स्वास्थ्य के लिए गुणकारी और बढ़िया पेय है। यह प्रचीन भारतीय परम्परागत स्वादिष्ट पेय है।
अनार का शर्बत- अच्छी तरह पके 20 अनारों के दाने निकालकर उनका रस निकाल लें। इस रस में 50-60 ग्राम कद्दूकस किया हुआ अदरक मिलाकर उबाल लें। चाहें तो इसमें थोड़ी चीनी मिला लें। गाढ़ा होने पर उसमें 3-4 पिसी इलायची और थोड़ी-सी केसर मिलाकर कांच की शीशी में भरकर रख लें और आवश्यकतानुसार थोड़ा पानी व कुटी बर्फ मिलाकर पिएं-पिलाएं। यह शर्बत पित्त नाशक होता है अतः दवा के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। गर्मी के मौसम में यह काफी राहत देता है।

लस्सी- ताजा दही में स्वादानुसार चीनी, ठंडा पानी, कुटी बर्फ, पिसी इलायची या गुलाब जल या कुवड़ा या किसी बोतलबन्द शर्बत की कुछ बूंदें मिलाकर लस्सी बनाकर पिएं-पिलाएं। इसमें चाहें तो थोड़ा दूध भी मिला सकते हैं। मीठी लस्सी की ही भांति नमकीन लस्सी भी बनाई जा सकती है। ताजा दही लेकर उसमें स्वादानुसार थोड़ सादा नमक, काला नमक, भुना पिसा जीरा, कुटी बर्फ और उपलब्ध हो तो कुछ पोदीने की हरी या सूखी पत्तियां पीसकर डाल दें। थोड़ी पिसी काली मिर्च भी डाली जा सकती है। शानदार स्वादिष्ट और गुणकारी पेय यानी लस्सी तैयार है। यह लस्सी शरीर में उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी को नियन्त्रित करती है। लस्सी पीने के बाद कुछ देर तक पानी नहीं पीना चाहिए।
दूध का शर्बत थोड़े दूध में जरा सी पिसी या साबुत सौंफ उबाल लें। उसमें और दूध तथा पानी मिलाकर सही मात्रा में चीनी डालकर मिला लें। अब इसे छान लें और कुटी बर्फ डालकर पियें-पिलाएं।
बराबर मात्रा में दूध और पानी लेकर उसमें मिश्री या शहद मिलाकर बनाया शर्बत पिएं-पिलाएं। इससे शरीर को पर्याप्त राहत मिलती है। जो लोग गर्मी के मौसम में भी दिन में कई बार चाय पीने के शौकीन हैं उनके लिए यह पेय आदर्श है।

सत्तू- गेहूँ, चना, चावल और जौ को बराबर मात्रा में सेंककर या भुनवाकर पीसकर एक साफ बरतन या मर्तवान में भरकर ढंककर रख लें। गर्मी की दोपहर में एक-दो चम्मच यह सत्तू लेकर उसमें पानी या दूध और मिश्री या चीनी मिलाकर ठंडा करके या बर्फ डालकर पिएं। सत्तू के सेवन से थकावट दूर होती है, ताजगी और शक्ति मिलती है। सत्तू का उपयोग भोजन के 2 घंटे पहले या बाद ही करना चाहिए। सत्तू को पतला बनाकर पीना ही अच्छा होता है। इसका अधिक मात्रा में और रात के समय सेवन करना आयुर्वेद के अनुसार ठीक नहीं।
इसी प्रकार आम, तरबूज, खरबूज, बेल, अंगूर आदि ताजा फलों को पानी में मसलकर या उनके रस भी शीतल पेय के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं।
अब इस गर्मी के मौसम में बोतलबन्द घातक कार्बोनेटेड नकली शीतल पेयों को और अपनाइए अपनी सुविधानुसार पारम्परिक स्वास्थ्यप्रद देशी पेय। हमारे ये पेय हर जेब के अनुकूल होने के साथ-साथ स्वाद के मामले में भी बेजोड़ हैं।

टी सी चन्दर/www.prabhasakshi.com

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008

तकनीक

बचिए हैकिंग के शिकार होने से
हैकिंग से बचने के लिए उपयोक्ता को स्वयं ही सावधान रहने की जरूरत है। साथ ही इसके लिए हर स्तर पर सावधानी बरतना आवश्यक है। स्कूल-कालेजों में सिक्योरिटी नार्म्स को अपनाया जा रहा है। शिक्षा संस्थानों के अलावा सरकार द्वारा अपने स्तर पर आवश्यक कदम उठाया जाना भी जरूरी है।
इन्टरनेट की लोकप्रियता और आवश्यकता निरन्तर बढ़ रही है। इस आधुनिक और त्वरित गति तकनीक के साथ-साथ कुछ खतरे तथा परेशानियां भी बढ़ गयीं हैं। सूचना, ज्ञान और जानकारी के अथाह भंडार को हम अलादीन के चिराग की उपमा सहज ही दे सकते हैं। कुछ बटन दबाते ही मनचाहा विवरण हमारे सामने होता है जिसे हम सहेज कर रख सकते हैं या उसका प्रिन्ट ले सकते हैं और जिसका आवश्यकतानुसार उपयोग कर सकते हैं।
अनगिनत युवा नेट सर्फिंग और चैटिंग करते हैं। इस आधुनिक तकनीक ने मनोरंजन, गपशप और देश-विदेश में दोस्त बनाना भी बेहद आसान बना दिया है। अधिकांश किशोर और युवा विपरीत लिंगी से (भले ही वे एक दूसरे से झूठ बोल रहे हों) मैत्री कर जमकर चैटिंग का आनन्द लेते हैं। इस नयी पीढ़ी के तमाम लोगों के लिए चैटिंग दिचर्या का ही अंग बन गयी है।
सर्फिंग और चैटिंग हैकिंग के चलते कभी भी परेशानी का कारण बन सकते हैं। आजकल हैकिंग का जोर काफी बढ़ रहा है। नयी तकनीक की जानकारी रखने वाले किसी भी शरारती या शातिर दिमाग वाले व्यक्ति के लिए हैकिंग बहुत आसान कार्य है। हैकिंग के लिए किसी विशेष योग्यता या क्षमता की आवश्यकता नहीं होती।
हैकिंग करने वाले को हैकर कहा जाता है। हैकर की पहुंच दूसरों के निजी ई-मेल और फाइलों तक सहज ही हो जाती है। सर्फिंग के दौरान हाऊ टू डू गाइड्स, आटोमटेड टूल्स आदि के कारण यह कार्य मुश्किल नहीं रह जाता। भले ही ज्यादातर किशोर और युवा मजे के लिए ही हैकिंग कर हैकर बनते हैं पर हैकिंग का कार्य एक साइबर अपराध है।
आईटी एक्ट के अनुसार किसी के निजी ई-मेल पढ़ना एक अपराध है। हांलाकि व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा के चलते हैकिंग कार्पोरेट जगत में एक व्यवस्थित अपराध बन गयी है। हैकरों को 2 नामों से जाना जाता है-व्हाइट हैट और ब्लैक हैट हैकर। बड़ी-बड़ी कम्पनियां अपने सुरक्षा तन्त्र को मजबूत बनाये रखने के लिए एथिकल एक्सपर्ट व्हाइट हैट हैकर नियुक्त करती हैं। ये किसी साइबर अपराध में शामिल नहीं होते अपितु साइबर अपराधों का पता लगाने और उनकी रोकथाम में मदद करते हैं। ज्यादातर मामलों में उत्सुकता और कुछ करके देखने के मजे लेने की इच्छा के कारण किशोर और युवा जाने-अनजाने इस अपराध कर्म के सहयोगी बन जाते हैं।
किशोर और युवा वर्ग हैकिंग का स्वयं आसानी से शिकार बन जाता है। हैकिंग के क्षेत्र के उस्ताद तरह-तरह के प्रलोभन से किशोर और युवा वर्ग को अपने जाल में फंसाते हैं। गेमिंग और चैटिंग आज के बहुत आकर्षक क्षेत्र हैं। एक अन्य आकर्षण है पोर्न साइट्स। इन साइट्स के होम पेज व कुछ अन्य हिस्सों में दी गयी सामग्री, चित्रों या वीडियो क्लिपिंग को देखकर किशोर और युवा ही नहीं बड़े भी कुछ और देखने के लिए इनके आकर्षण में फंस जाते हैं। इन साइट्स की सदस्यता के बहाने लोगों से अन्य विवरण के साथ-साथ क्रेडिट कार्ड, बैंक खाते आदि के बारे में आवश्यक जानकारी भी प्राप्त कर ली जाती है। चैटिंग के जरिए भी हैकर चैट रूम में प्रवेश कर उपयोक्ता को धीरे-धीरे विश्वास में लेकर अपने काम की जानकारी ले लेते हैं। इस जानकारी का उपयोग हैकर अपने हित में और उपयोक्ता को नुकसान पहुंचाने के लिए करते हैं।
हैकिंग से बचने के लिए उपयोक्ता को स्वयं ही सावधान रहने की जरूरत है। साथ ही इसके लिए हर स्तर पर सावधानी बरतना आवश्यक है। स्कूल-कालेजों में सिक्योरिटी नार्म्स को अपनाया जा रहा है। शिक्षा संस्थानों के अलावा सरकार द्वारा अपने स्तर पर आवश्यक कदम उठाया जाना भी जरूरी है। उपयोक्ता और अभिभावकों को भी सावधान रहने की जरूरत है। अभिभावकों को बच्चों के द्वारा की गयी नेट सर्फिंग पर नजर रखना चाहिए। हालांकि साइबर कैफे आदि के उपयोग को देखते ऐसा कर पाना काफी मुश्किल है। इन्टरनेट के तेजी से होते प्रसार और अच्छी बैंडविड्थ की सुविधा ने निःसंदेह जागरूक अभिभावकों के माथे पर पिंता की एक और लकीर बढ़ा दी है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि आज के भागमभाग के समय में अधिकांश सक्षम अभिभावकों के पास बच्चों की आर्थिक जरूरतों की पूर्ति के अलावा उनके लिए समय ही नहीं है। कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है कि इंटरनेट पर महत्वपूर्ण निजी जानकारियां, फोटो आदि, जिनसे कोई आपको आर्थिक हानि पहुंचा सके या ब्लैमेल कर सके, देने से बचना चाहिए। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की नेट सर्फिंग पर नजर रखें। नियमित रूप से सर्फिंग के दौरान विजिट की गयी साइट्स की जांच करते रहना चाहिए। हैकिंग के बारे में बताते हुए उन्हें सावधान रहने की हिदायत देना भी जरूरी है।
हैकिंग से बचने के लिए बच्चों को ही नहीं बड़ों को भी प्रशिक्षित किया जाना जरूरी हो गया है। हैकिंग के विरुद्ध आवश्यक कानून बनाने की भी जरूरत है। हैकर की पहचान करना साइबर क्राइम विशेषज्ञों के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है पर इस अपराध के लिए बड़ी सजा का प्रावधान नहीं है। विशेष रूप से अवयस्क हैकिंग अपराधियों को चेतावनी और मामूली सजा दी जाती है।
टी.सी. चन्दर

रविवार, 13 अप्रैल 2008

करियर Career

माडलिंग के क्षेत्र में है ग्लैमर और पैसा भी
मेहनत, लगन, आत्मविश्वास, दृढ़निश्चय आदि के साथ अपने काम में जुट जाना ही अच्छे परिणाम देगा। माडलिंग के क्षेत्र में आय का कोई निश्चित पैमाना नहीं है। किसी माडल की आय उसकी लोकप्रियता, मांग और विज्ञापन के बजट पर निर्भर करती है। यों सक्रिय माडलों की आय काफी अच्छी होती है पर निश्चित नहीं होती। यह आय काम, मांग और उसके स्तर के अनुसार कुछ सौ रुपयों से लेकर हजारों या लाखों रुपये तक हो सकती है।
माडलिंग का नाम आते ही तमाम लोकप्रिय और सुन्दर चेहरे आंखों के आगे तैर जाते हैं। पहले अखबार-पत्रिकाओं, बोर्ड-होर्डिंग, पोस्टर, सिनेमा के पर्दे वगैरह पर विज्ञापनों में विभिन्न उत्पाद, सेवाओं या संदेशों के साथ आवश्यकतानुसार माडलों का उपयोग किया जाता रहा है। पर अब बदले समय के साथ प्रचार माध्यमों और उनके उपयोग में भी भारी बदलाव आया है। किसी उत्पाद के प्रचार और उसकी बिक्री बढ़ाने में विभिन्न प्रकार के विज्ञापनों का अपना विशेष योगदान होता है और सही माडल का भी। मशहूर और आकर्षक माडल लोगों या संभावित ग्राहकों का ध्यान सहज ही ध्यान आकर्षित करते हैं। बिना विज्ञापन के आज किसी उत्पाद के प्रचार और उसकी बिक्री को बढ़ाना असंभव सा है।
किसी उत्पाद या सेवा की लोगों में मांग पैदा कर उसकी बिक्री बढ़ाना या उसे लोकप्रिय बनाना किसी विज्ञापन का पहला उद्देश्य होता है। फैशन शो, टीवी और उस पर केबल या डिश के माध्यम से दिखाये जा रहे देश-विदेश की विभिन्न भाषाओं के समाचार, मनोरंजन, धार्मिक, गीत-संगीत, जानकारी, फैशन, जीवनशैली, खेल, फिल्म आदि से जुड़े चैनलों में रोजाना ढेरों विज्ञापन दिखाये जाते हैं। इन विज्ञापनों में विभिन्न आयु वर्गों के तमाम माडल भी दिखाये जाते हैं। कोई भी विज्ञापन बिना उपयुक्त माडल के अधूरा है। विभिन्न उत्पादों के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयुक्त होने वाले विज्ञापन माध्यमों के प्रसार के साथ ही विज्ञापन और माडलों की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है।
किसी उत्पाद का उत्पादक लोगों के पास सीधे नहीं पहुंच सकता। उसे विज्ञापन माध्यमों का सहारा लेना ही पड़ता है और विज्ञापनों में उपयुक्त माडल का उपयोग करना भी उतना ही जरूरी हो जाता है। प्रायः जानेमाने या मशहूर माडल या माडल के रूप में अनेक खिलाड़ी, अभिनेता-अभिनेत्रियां और कभी-कभी खास हस्तियां भी विज्ञापनों में दिखायी देती हैं। विज्ञापन एजेंसियां और उत्पादक बड़ी चतुराई से उस माडल बनाये गये व्यक्ति के गुणों, विशेषता या प्रसिद्धि का अपने हित में उपयोग करते हैं। एक कुशल माडल अपने माडल हावभाव, आकर्षक पहनावे, बातों और अभिनय के माध्यम से सम्बन्धित उत्पाद को लोगों के सामने प्रस्तुत करते हैं और उसे खरीदने को प्रेरित करते हैं। ऐसा लगता है जैसे वे उस उत्पाद के बारे में बिलकुल सच कह रहे हैं।
जहां विज्ञापन जगत में कुछ चेहरे लम्बे समय तक धूम मचाये रहते हैं, वहीं कुछ चेहरे थोड़े समय के बाद ही गायब भी हो जाते हैं। कुछ अपवादों को छोड़ माडलिंग की दुनिया में चेहरे प्रायः स्थाई नहीं होते। नये-नये चेहरे आते रहते हैं। जानेमाने क्रिकेट खिलाड़ियों और फिल्म-टीवी अभिनेता-अभिनेत्रियों, संगीतज्ञों का माडलिंग के क्षेत्र में लम्बे समय से महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है। मशहूर हस्तियां माडलिंग के क्षेत्र में अपनी शर्तों पर सक्रिय होकर और अधिक नाम और दाम कमा रहे हैं।
माडलिंग का व्यवसाय लोकप्रियता के साथ-साथ धन कमाने का बेहतर पर कड़ी प्रतियोगिता वाला क्षेत्र है। एक अच्छा माडल सफल होने के साथ ही जीवन के कई क्षेत्रों में आगे बढ़ जाता है। आज के अनगिनत युवक-युवतियां माडलिंग के क्षेत्र में अपना कॅरियर तलाश करने को सक्रिय हैं। यह जानते हुए भी कि इस क्षेत्र में प्रायः एक माडल का जीवन अधिक लम्बा नहीं होता, इस क्षेत्र को अपनाने की ललक युवाओं में बढ़ती ही जा रही है।
इस क्षेत्र में भाग्य आजमाने के लिए विशेष शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं पड़ती सो पढ़ाई में अधिक सिरखपाई की जरूरत नहीं। उच्च शिक्षा प्राप्त किये बिना भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया जा सकता है। हां, अनेक क्षेत्रों की भांति यहां भी अंग्रेजी भाषा बोलना-समझना और सामान्य ज्ञान उपयोगी सिद्ध होता है। माडलिंग के लिए किसी खास योग्यता की आवश्यकता नहीं होती। विज्ञापनों में काम करने के लिए नवजात से लेकर बुजुर्ग तक हर प्रकार के माडल की आवश्यकता पड़ती है। बच्चे, बूढ़े, युवा, किशोर, महिला, पुरुष आदि सभी माडल के रूप में काम कर सकते हैं। यह सच नहीं कि सुन्दर, सुडौल, गोरे, आकर्षक आदि गुण-विशेषताओं वाले लोग ही माडल बन सकते हैं। ऐसे अनेक माडल हैं जो सामान्य चेहरे, कद-काठी के स्वामी हैं पर वे लगातार काम कर रहे हैं। किसी माडल के लिए सौंदर्य सम्बन्धी कोई विशेष मानदण्ड नहीं अपनाये जाते। उसका चेहरा फोटो जनिक होना चाहिए। प्रायः ऐसा होता है कि वास्तविक जीवन में सुन्दर और आकर्षक दिखने वाले व्यक्ति का चेहरा फोटों में ठीक नहीं आता और साधारण दिखने वाले व्यक्ति का चेहरा फोटो में आकर्षक दिखता है।
आमतौर पर मासूम और आकर्षक चेहरा, शरीर की सही संतुलित बनावट, परिश्रम, सामान्य या अच्छी लम्बाई, अच्छा स्वास्थ्य, आकर्षक मुसकान, चुस्तीफुर्ती, समय की पाबन्दी, व्यवहार कुशलता, नम्रता, आत्मविश्वास आदि गुण-विशेषताओं वाले लोग माडलिंग के क्षेत्र में सफलता की अपनी राह आसानी से बना लेते हैं। खुले विचारों वाले लोगों को इस क्षेत्र में पसन्द किया जाता है। अन्य क्षेत्रों की भांति इस क्षेत्र में आने, जमने और जमे रहने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। अपने शरीर को संतुलित बनाये रखने के लिए सही खानपान पर ध्यान देने के अलावा नियमित रूप से योग, व्यायाम, प्राणायाम आदि करना भी जरूरी है। आकर्षक दिखने के लिए विशेषज्ञों की राय भी अपनानी चाहिए। मनमोहक हावभाव, चाल-ढाल, साजसंवार आदि के लिए आवश्यक हो तो योग्य व अनुभवी लोगों से उपयुक्त प्रशिक्षण लेकर अभ्यास भी करना चाहिए।
आजकल महानगरों के साथ-साथ छोटे शहरों में भी अनेक विज्ञापन एजेन्सियां कार्यरत हैं। प्रायः हर विज्ञापन में विज्ञापन एजेन्सी और विज्ञापनदाता की पसन्द के माडल की आवश्यकता होती है। माडलों की आवश्यकता के लिए कभी-कभी पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन भी छपते हैं। आमतौर पर माडल बनने के इच्छुक स्वयं विज्ञापन एजेन्सी से या माडल सप्लाई करने वाली एजेन्सी से सम्पर्क करते हैं। ‘माडल’ को अपना पोर्टफोलियो बनवाना पड़ता है। इसके लिए कुछ हजार रुपये खर्च भी करने पड़ते हैं। इच्छुक व्यक्ति की फोटो पसन्द आने पर विज्ञापन एजेन्सी फोटो सेशन के लिए भी बुलाती है जिसके लिए आवश्यक तय शुल्क भी देना पड़ सकता है। चयन किये जाने पर उम्मीदवार का नाम उस एजेन्सी की सूची में शामिल कर लिया जाता है और आवश्यकता पड़ने पर उस व्यक्ति को बुला लिया जाता है।
कई बार विज्ञापन एजेन्सियों के कर्ताधर्ता, एजेन्ट और कभी-कभी विज्ञापनदाता भी सड़क-चैराहे, विभिन्न कार्यक्रम या सार्वजनिक स्थानों पर भी अपने माडल की तलाश में रहते हैं। माडलिंग के क्षेत्र में कदम रखने के लिए बहुतायात में छप रही पत्र-पत्रिकाएं एक अच्छा माध्यम सिद्ध हो सकती हैं। इनमें विभिन्न विषयों पर छपने वाले लेख-कहानियों आदि को सजीव और सचित्र बनाने के लिए भी माडलों का उपयोग किया जाता है। आजकल अनेक टीवी चैनल किसी विशेष समाचार या प्रसंग को नाट्य रूपांतर कर दिखाने में माडलों के अभिनय का उपयोग कर रहे हैं। इस प्रकार की माडलिंग अपेक्षाकृत अधिक सरल होती है। इसके लिए पत्र-पत्रिकाओं के फोटोग्राफरों के सम्पर्क में भी रहना चाहिए।
मेहनत, लगन, आत्मविश्वास, दृढ़निश्चय आदि के साथ अपने काम में जुट जाना ही अच्छे परिणाम देगा। माडलिंग के क्षेत्र में आय का कोई निश्चित पैमाना नहीं है। किसी माडल की आय उसकी लोकप्रियता, मांग और विज्ञापन के बजट पर निर्भर करती है। यों सक्रिय माडलों की आय काफी अच्छी होती है पर निश्चित नहीं होती। यह आय काम, मांग और उसके स्तर के अनुसार कुछ सौ रुपयों से लेकर हजारों या लाखों रुपये तक हो सकती है। एक माडल के लिए उसका लोकप्रिय होना भी जरूरी है।
अनेक ऐसे नाम भी हैं जिन्होंने माडलिंग की दुनिया से फिल्मों और टीवी सीरियल और एंकरिंग के क्षेत्र में छलांग लगायी है और इनमें से अनेक सफल भी हुए हैं। माडलिंग के क्षेत्र में पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त करने के बाद भी कोई माडल लम्बे समय तक प्रायः नहीं रह पाता। नित नये चेहरे इस क्षेत्र में आते रहते हैं। अतः एक माडल को काफी समझदारी के साथ काम करना चाहिए और दूरदर्शी बनकर अपने भविष्य को सदा ध्यान में रखना चाहिए।
बाजार से हटने के साथ ही रोजगार के उचित विकल्प को ध्यान में रखना चाहिए। किसी एजेन्सी, प्रतिष्ठान आदि में नौकरी की जा सकती है और अपने अनुभव के आधार पर नये माडलों के लिए प्रशिक्षण संस्थान खोला जा सकता है। अभिनय का क्षेत्र भी अपनाया जा सकता है जहां लम्बे समय तक टिका जा सकता है। इस क्षेत्र में अच्छे सम्पर्क बनाये रखना बहुत काम आता है। अपने नगर-शहर की विज्ञापन एजेन्सियों से सम्पर्क कर उन्हें अपने बारे में बताना ही इस क्षेत्र में उतरने की दिशा में पहला कदम होगा।
टी.सी. चन्दर/www.prabhasakshi.com
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वीडियो सम्पादन के क्षेत्र में है बेहतर आमदनी

वीडियो सम्पादन के क्षेत्र में कुशल और अनुभवी वीडियो सम्पादक की सदा मांग रह्ती है। वीडियो सम्पादक ही वह व्यक्ति होता है जो कहानी के अनुसार समझदारी से शूट किये या फ़िल्माए गये दृश्यों को सही ढंग से या सिलसिलेवार ढंग से जोड़कर वांछित फ़िल्म बनाता है।

म्प्यूटर का प्रयोग लगभग हर क्षेत्र में प्रमुखता से हो रहा है। नये-नये उपयोगी साफ़्टवेयरों का प्रयोग कर सम्बन्धित कार्य को और बेहतर ढंग से किया जा रहा है। अन्य क्षेत्रों की भांति वीडियो सम्पादन के क्षेत्र में भी कम्प्यूटर का उपयोग खूब किया जा रहा है। किसी विषय को लेकर शूट की गयी फ़िल्म को ऐसे ही प्रस्तुत नहीं किया जाता। हमारे सामने जो फ़िल्म आती है उसके पीछे कुशल सम्पादन की भूमिका काफ़ी महत्वपूर्ण होती है।

शूट किये गये दृश्य प्रायः सिलसिलेवार ढंग से नहीं फ़िल्माए जाते। कथा-पटकथा के विभिन्न भागों को ध्यान में रखते हुए ज्यादातर मामलों में आवश्यकता और सुविधानुसार ही दृश्यों को फ़िल्मा लिया जाता है। इसके बाद वीडियो सम्पादन का कार्य शुरू होता है। फ़िल्म निर्माण में जुटे लगभग सभी प्रतिष्ठानों और टीवी चैनलों में अब नान लीनियर सम्पादन सिखाया जाता है।

वीडियो सम्पादन के क्षेत्र में कुशल और अनुभवी वीडियो सम्पादक की सदा मांग रह्ती है। वीडियो सम्पादक ही वह व्यक्ति होता है जो कहानी के अनुसार समझदारी से शूट किये या फ़िल्माए गये दृश्यों को सही ढंग से या सिलसिलेवार ढंग से जोड़कर वांछित फ़िल्म बनाता है। एक वीडियो सम्पादक में आवश्यक तकनीकी जानकारी के अलावा प्रस्तुतिकरण के लिए सौन्दर्यबोध, मल्टीमीडिया, कहानी-दृश्य-गीत-संगीत आदि पहलुओं की उचित समझ होनी चाहिए। केमरा दृश्यों व ध्वनि (साउण्ड इफ़ेक्ट) की पर्याप्त जानकारी इस क्षेत्र में काफ़ी महत्वपूर्ण होती है।
फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र के विस्तार के साथ-साथ समाचार, मनोरंजन, धर्म-अध्यात्म, शिक्षा आदि अनेक विषयों को लेकर 24 घन्टे चलने वाले टीवी चैनलों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। समाचार-मनोरंजन उद्योग के विस्तार के चलते कुशल वीडियो सम्पादकों की मांग भी बढ़ी है। वीडियो सम्पादन के क्षेत्र में नये-नये और बेहतर क्षमता वाले एडोब, एफ़सीपी, स्मोकन्यूज फ़्लैश, एविड जैसे साफ़्टवेयरों का उपयोग किया जा रहा है।
रोजगार के इओस महत्वपूर्ण क्षेत्र में प्रवेश के लिए उचित प्रशिक्षण और अनुभव प्राप्त करना बहुत जरूरी है। वीडियो सम्पादन के क्षेत्र में प्रशिक्षण देने के लिए देश के बड़े शहरों में अनेक सरकारी और निजी प्रशिक्षण संस्थान कार्यरत हैं। वीडियो सम्पादन में भविष्य संवारने के लिए 3 से 6 माह अवधि वाले अल्पावधि (शार्ट टर्म) पाठ्यक्रम, एक स्सल अवधि वाले सर्टिफ़िकेट पाठ्यक्रम, 1 से 3 साल अवधि वाले डिप्लोमा पाठ्यक्रम और 3 साल वाले स्नातक (ग्रेजुएट) और स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएट) प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। कहीं भी प्रवेश लेने से पहले सम्बन्धित संस्थान, प्रशिक्षण अवधि, शुल्क आदि के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना हितकर होगा। उल्लेखनीय है कि सभी संस्थानों में लिखित परीक्षा औरे साक्षात्कार के बाद ही सीमित संख्या में प्रवेश दिया जाता है।
प्रशिक्षण संस्थान-
फ़िल्म एण्ड टेलीविजन इन्स्टीट्यूट, ला कालेज रोड, पुणे-411004, फ़ोन: 020-24431817, 24433016, 24433017. सत्यजित रे फ़िल्म एण्ड टेलीविजन इन्स्टीट्यूट, ईएम बाईपास रोड, पीओ पन्चशायर, कोलकाता-700084, फ़ोन: 033- 24328355, 24328356, 24329300. एशियन अकादमी आफ़ टेलीविजन, मारवाह स्टूडियो काम्प्लेक्स, एफ़सी-14/15, फ़िल्म सिटी, नोएडा-201301, फ़ोन: 0120-2515254, 2515255, 251525
टी.सी. चन्दर/प्रभासाक्षी.काम

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