युवाउमंग में पढ़िए

रविवार, 10 अप्रैल 2011

सावधान

प्रोफेशनल कोर्स में प्रवेश लेने से पहले रहें सावधान
राजधानी में अखबारों में कम शुल्क में कम्प्यूटर शिक्षा का धुंआधार विज्ञापन करने वाले एक उद्योगपति होटल मालिक के इंस्टीट्यूट के अच्छी शिक्षा के दावों में कितनी दम है यह बात भुक्तभोगी छात्र अपने कीमती ८-१० महीने और ‘कम फ़ीस’ बरबाद करने के बाद ही जान पाते हैं। यहां अंग्रेजी बोलचाल भी सिखाई जाती है। हां, फ़ीस के बदले कुछ खास नहीं सिखाया जाता, बस २-३ मोटी किताबें जरूर दे दी जाती हैं।
पत्रकारिता, प्रबन्धन, अभिनय, फोटोग्राफी, मल्टीमीडिया व एनीमेशन, फैशन डिजाइनिंग, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर व नेटवर्किंग, मोबाइल मरम्मत, कॉल सेन्टर ट्रेनिंग आदि विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के अनेक प्रशिक्षण केन्द्र या इंस्टीट्यूट आजकल कुकुरमुत्तों की तरह उग आये हैं। ये इंस्टीट्यूट नगर-महानगरों के युवाओं की योग्यता, क्षमता, उत्साह, आकांक्षा आदि का मजाक उड़ाते लगते हैं। यहां छात्रों के भविष्य और कीमती समय की चिन्ता करने की बजाय इंस्टीट्यूटों के मालिक केवल अधिकतम धन लूटने में लगे रहते हैं। नये पाठ्यक्रम, इंटर्नशिप, ट्रेनिंग, शिविर, रोजगार दिलाने, शैक्षिक यात्रा आदि विभिन्न कार्यों के लिए आवश्यकता से अधिक धन वसूलना आम है।
राजधानी में अखबारों में कम शुल्क में कम्प्यूटर शिक्षा का धुंआधार विज्ञापन करने वाले एक उद्योगपति होटल मालिक के इंस्टीट्यूट के अच्छी शिक्षा के दावों में कितनी दम है यह बात भुक्तभोगी छात्र अपने कीमती ८-१० महीने और ‘कम फ़ीस’ बरबाद करने के बाद ही जान पाते हैं। यहां अंग्रेजी बोलचाल भी सिखाई जाती है। हां, फ़ीस के बदले कुछ खास नहीं सिखाया जाता, बस २-३ मोटी किताबें जरूर दे दी जाती हैं। आजकल छात्रों को फ़्री लैपटॉप देने की बात भी कही जा रही है। अक्सर इस संस्थान के ‘गुरुओं’ की आवश्यकता के विज्ञापन आते हैं जिनमें मासिक वेतन मात्र १०००० रुपये बताया जाता है। इसी तरह अनेक दुकानें चल रही हैं जिनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।
बड़े शहरों में विशेष रूप से ऐसे धंधेबाज इंस्टीट्यूटों की बाढ़ आयी हुई है। यह भी देखने में आया है कि अनेक पाठ्यक्रमों में पूरे साल पढ़ने-पढ़ाने के बाद परीक्षा निकट आते ही बिना कारण बताये छात्रों का प्रवेश पत्र रोक लिया जाता है। कारण, वही मनमानी वसूली। धन मिलने पर ही प्रवेश पत्र दिया जाता है। इस प्रकार की ब्लैक मेलिंग तमाम इंस्टीट्यूटों में चलती है। अच्छीखासी धनराशि वसूलने के बाद ही छात्र को परीक्षा में बैठने दिया जाता है। ऐसे मामलों को लेकर छात्र और अभिभावक काफी परेशान होते हैं। आमतौर पर प्रवेश पत्र रोके जाने का कारण कक्षा में कम उपस्थिति बताने जैसा घिसापिटा बहाना ही बताया जाता है। भारीभररकम जुर्माना देने के बाद सब ठीक हो जाता है।
सम्पन्न अभिभावकों को इसप्रकार जुर्माना चुका पाने में दिक्कत नहीं होती। दिक्कत उन्हें होती है जो मध्य वर्गीय या गरीब होते हैं। जैसे-तैसे वे अपने बच्चों का भविष्य संवारने के सपने को साकार करने को साधन जुटाते हैं। एक मामले में इंजीनियरिंग का छात्र निराश होकर आत्महत्या के लिए भी विवश हो गया। उसने प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। सौभाग्य से उसकी बात सुनी गयी और उसे प्रशासन के हस्तक्षेप से प्रवेश पत्र मिल गया। पर सभी के साथ ऐसा नहीं हो पाता।
ऐसे छात्रों की संख्या कम नहीं है जो धंधेबाज इन्स्टीट्यूट संचालकों की मीठी बातों और झूठे वायदों-दावों में फंसकर मोटी राशि चुका देते हैं। ऐसे तमाम इन्स्टीट्यूट हैं जिनके पास न उपयुक्त भवन हैं न सही उपकरण या अन्य सुविधाएं। असलियत का पता प्रायः बाद में ही चलता है। इसी तरह लम्बी अवधि के पाठ्यक्रम के साथ-साथ क्रश कोर्स का दावा भी कई बार खोखला साबित होता है। इसके अलावा अवधि पूरी होने पर परीक्षा के बाद प्रमाण पत्र देने के नाम पर भी धन की मांग की जा सकती है। ऐसी ही तमाम समस्याओं से जूझते अनगिनत युवा अपना कैरियर बिगड़ने के डर से चुप रहते हैं और कुंठाग्रस्त हो जाते हैं।
शिक्षा और प्रशिक्षण की ऐसी दुकानों से सावधान रहना जरूरी हे। शतप्रतिशत रोजगार दिलाने का दम भरने वाले कितने इन्स्टीट्यूट अपना वायदा पूरा करते हैं, ईश्वर ही जाने। अच्छा यही है कि सम्बन्धित इन्स्टीट्यूट में प्रशिक्षण प्राप्त कर रह कुछ छात्रों से बातचीत करने के बाद ही यदि उचित लगे तो वहां प्रवेश लेना चाहिए। इन्स्टीट्यूट संचालक यह भलीभांति जानते हैं कि आज रोजगारपरक शिक्षा या प्रशिक्षण का जमाना है सो वे अपनी शैतानी बुद्धि का उपयोग छात्रों को ठगकर धन ऐंठने में करते हैं। पत्रकारिता और विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के निरन्तर बढ़ते आकर्षण के चलते तमाम धंधेबाज इन्स्टीट्यूटनुमा दुकानें खोलकर बैठ गये हैं। इनके पास प्रशिक्षण के लिए न उपयुक्त शिक्षक-प्रशिक्षक होते हैं और न ही सही साधन। अनेक टीवी चैनलों ने भी अपनी दुकानें खोल ली हैं।
व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को लेकर तमाम मामले प्रकाश में आते हैं और अनेक लोग अदालतों की शरण में भी जाते हैं। यदि छात्र पाठ्यक्रमों से जुड़े सभी कागजात, लिखित अनुबन्ध, नियम, शर्तें, अन्य विवरण आदि प्रस्तुत करते हैं तभी उनका पक्ष मजबूत होता है। धंधेबाज और धोखेबाज इन्स्टीट्यूटों के बारे में शिकायत अवश्य करनी चाहिए। छात्रों को चाहिए कि वे प्रवेश लेने से पहले विश्वविद्यालय या अन्य सम्बन्धित विभाग आदि से मान्यता और सत्यता की जांच कर लेनी चाहिए। इसके अलावा पाठ्यक्रम सम्बन्धी विवरण लिखित में या छपा हुआ लें। मौखिक बातों पर भरोसा कभी न करें। इण्टरनेट की सुविधा के चलते भी धन्धेबाज लोग खूब लाभ उठा रहे हैं। अतः हर वेबसाइट में कही गयी बातों पर बिना सोचे-समझे-परखे आंख मूंदकर विश्वास करना नुकसानदायक सिद्ध हो सकता है। यदि कोई धन्धेबाजों की धोखेबाजी का शिकार बन जाए तो उसे चुप बैठने की बजाय और लोगों को बताने के साथ-साथ उपभोक्ता फोरम में पूरे विवरण के साथ अपना पक्ष अवश्य रखना चाहिए।      
http://profile.ak.fbcdn.net/hprofile-ak-snc4/49148_1362311249_1430_q.jpg  
• टी.सी. चन्दर
प्रभासाक्षी में प्रकाशित 
शिकायत बोल- आपकी सब शिकायतों का मंच

किस्मत

किस्मत के भरोसे कुछ हासिल नहीं होता   
परिश्रम और लगन का कोई विकल्प नहीं होता। असफलता को भूल जाना और उससे सबक लेकर आगे बढ़ना ही अच्छा होगा। सफल होने तक बढ़ते रहिए। निराश होकर या हारकर मत बैठिए। लक्ष्य आपसे अधिक दूर नहीं है। सफलता आपसे कुछ कदम ही दूर है। आप उसे देख रहे हैं तो उसे अपना बनाने से आपको कोई रोक नहीं सकता। सबसे बड़ी बात यह है कि सफलता और आपके बीच किस्मत नाम का कोई पड़ाव है ही नहीं!  
आज के वैज्ञानिक युग में सफलता और असफलता को किस्मत का खेल मानने वाले अंधविश्वासी लोगों की संख्या कम नहीं। भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ हासिल होने वाला नहीं, यह बात जानते हुए भी अनगिनत लोग लकीर के फकीर बने रहते हैं। सफलता या असफलता उसे ही मिलती है जो उठकर योजना बनाकर चलने की कोशिश करता है। भाग्य या किस्मत के भरोसे बैठे रहकर सफलता की बाट जोहने वालों के कुछ हाथ नहीं आता। सफलता उसे ही मिलती है जो उसे पाने के लिए यथाशक्ति प्रयास करता है। सफलता के लिए पहले से ही आशंकित व्यक्ति को भला क्या मनचाही सफलता मिल सकती है! हर व्यक्ति की सफलता के पीछे उसके अपने प्रयास ही होते हैं। हां, किसी व्यक्ति को यूं ही सफलता मिल भी गयी हो तो यह मात्र संयोग ही हो सकता है जो कभी-कभार ही सम्भव है।
अच्छी और बुरी किस्मत का भ्रम अनगिनत लोगों को बैठेबिठाये असफल बना चुका है। अनेक युवाओं में प्रायः यह धारणा जड़ जमा लेती है कि किस्मत ने साथ दिया तो सफलता मिल ही जाएगी। चाहे जितना प्रयास कर लो, अगर किस्मत बुलन्द नहीं हुई तो कुछ होने वाला नहीं है। यानी किस्मत की शक्ति अपार है, यह मानने वालों की संख्या भी काफी है। इस प्रकार अपनी असफलताओं और कमियों का दोष बड़ी आसानी से औरों पर या किस्मत के मत्थे मढ़ा जा सकता है।
किस्मत के भरोसे रहने वाले युवा प्रायः औरों के लिए भी घातक हैं। वे अपनी निराशावादी प्रवृत्ति का जाने-अनजाने प्रसार ही करते हैं। लोगों में यह धारणा घर कर जाती है कि किस्मत से ही सफलता मिलेगी या जिन्हें सफलता मिलती है वे ही किस्मत के धनी होते हैं। परीक्षा हो या साक्षात्कार या फिर कोई अन्य कार्य, उसमें सफलता पाने के लिए उपयुक्त कार्ययोजना, लगन, समय का उचित प्रबन्धन, योग्यता, परिश्रम, समुचित प्रयास, दृढ़ निश्चय, संघर्ष, आत्मविश्वास आदि का महत्वपूर्ण योगदान होता है। आज के प्रतियोगिता के समय में किसी क्षेत्र विशेष में सफलता पा लेना थोड़ा कठिन अवश्य हुआ है पर असंभव नहीं। इस बात को ध्यान में रखते हुए अपना लक्ष्य तय करते समय उससे मिलते-जुलते और अपनी रूचि के विकल्प को भी ध्यान में रखना चाहिए।
इतिहास गवाह है कि आदमी को अपनी आवश्यकता और देखे गये सपनों को पूरा करने के लिए धुन के पक्के बनकर अनथक प्रयास करने के बाद ही सफलता मिली है। वह कभी सफल रहा और कभी असफल भी। असफलताओं ने आदमी को सिखाया भी। तब आदमी किस्मत के भरोसे बैठा रहता तो निश्चय ही आज भी हम उसी सदियों पुराने समय जैसी स्थिति में जी रहे होते। किसी व्यक्ति की सफलता उसके तमाम प्रयासों पर ही निर्भर करती है। यदि पर्याप्त प्रयासों के बाद भी असफलता मिलती है तो उसके पीछे अनेक कारण और कमियां हो सकती हैं। जिन पर ध्यान देकर पुनः प्रयास करके सफलता प्राप्त की जा सकती है।
अच्छा यही है कि काम आरम्भ करने से पहले उस पर भलीभांति विचार करना आवश्यक है। अपने कॅरियर या लक्ष्य के बारे में तय करने से पहले उससे मिलते-जुलते विकल्पों पर भी ध्यान देना चाहिए। निराशा या नकारात्मक सोच से उबरकर आशावादी या सकारात्मक सोच अपनाना बेहद जरूरी है। सफलता के प्रति सन्देह को स्थान नहीं मिलना चाहिए। यह याद रखना चाहिए कि किसी व्यक्ति को भी सफलता चुटकी बजाते नहीं मिल जाती। हर सफलता के पीछे उसे पाने के लिए ईमानदारी से किये गये प्रयास होते हैं। इसके लिए अपने कुछ छोटे-बड़े जरूरी-गैर जरूरी सुख भी त्यागने पड़ते हैं। सफलता एक दिन में नहीं मिल जाती, इसके पीछे होते हैं निरन्तर किये जाने वाले प्रयास। परिश्रम और लगन का कोई विकल्प नहीं होता। असफलता को भूल जाना और उससे सबक लेकर आगे बढ़ना ही अच्छा होगा। सफल होने तक बढ़ते रहिए। निराश होकर या हारकर मत बैठिए। लक्ष्य आपसे अधिक दूर नहीं है। सफलता आपसे कुछ कदम ही दूर है। आप उसे देख रहे हैं तो उसे अपना बनाने से आपको कोई रोक नहीं सकता। सबसे बड़ी बात यह है कि सफलता और आपके बीच किस्मत नाम का कोई पड़ाव है ही नहीं!        
http://profile.ak.fbcdn.net/hprofile-ak-snc4/49148_1362311249_1430_q.jpg
• टी.सी. चन्दर
प्रभासाक्षी में प्रकाशित 
शिकायत बोल- आपकी सब शिकायतों का मंच

युवाउमंग