युवाउमंग में पढ़िए

मंगलवार, 20 नवंबर 2007

स्वागत






युवाउमंग


में आपका स्वागत है!


YUVAAUMANG


men aapakaa swaagat hai!

शुभ दिन

शुभ दिन!

हर दिन, हर पल को शुभ मानें, शुभ दिन और शुभ पल का इंतजार न करें। हर सेकंड, हर पल का महत्व समझते हुए उसका पूरी योजना बनाकर सदुपयोग करें। इसके लिए न किसी ज्योतिषी के पास जाने की जरूरत है न शुभ मुहूर्त का इंतजार करने की। आपके आगे बढ़ने में सिर्फ स्वयं आपके ही प्रयास काम आएंगे।

तो अब देर किस बात की, आज और अभी से शुरू कीजिए कार्य योजना बनाकर समय का भरपूर सदुपयोग। आपके ज्ञान, कौशल, योग्यता, एकाग्रता आदि में श्रीवृद्धि हो और आपका व्यक्तित्व पूर्ण बने जिससे आपके भावी जीवन में उन्नति और सुख-समृद्धि आये। आप सभी मित्रों को युवाउमंग और मेरी ओर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं!
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वन्दे मातरम्


वन्दे मातरम्

सुजलाम् सुफ़लाम् मलयज शीतलाम्

शस्य श्यामलाम् मातरम्॥

वन्दे मातरम्

शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्

फ़ुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्

सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्

सुखदाम् वरदाम् मातरम्॥

वन्दे मातरम्

कोटि कोटि कण्ठ कलकल निनाद कराले

कोटि कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले

अबला केनो माँ एतो बले

बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्

रिपुदल वारिणीम् मातरम्॥

वन्दे मातरम्

तुमि विद्या तुमि धर्म

तुमि हृदि तुमि मर्म

त्वम् हि प्राणः शरीरे

बाहु ते तुमि माँ भक्ति

तोमाराइ प्रतिमा गडि मन्दिरे मन्दिरे॥

वन्दे मतरम्

त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरण धारिणी

कमला कमलदल विहारिणी

वाणी विद्या दायिनी, नवामि त्वाम्, नमामि कमलाम्

अमलाम्, अतुलाम्, सुजलाम्, सुफ़लाम्, मातरम् ॥

वन्दे मातरम्

श्यामलाम्, सरलाम्, सुस्मिताम्, भूषिताम्,

धरणीम्, भरणीम् मातरम्

वन्दे मातरम्

व्यक्तित्व विकास

लाभदायक है पढ़ने की आदत

पढ़ने की आदत महिला, पुरुष, युवा, किशोर, प्रौढ़, वृद्ध यानी हर उम्र के लोगों के लिए विभिन्न प्रकार से उपयोगी सिद्ध होती है। नौकरी-व्यवसाय ही नहीं जीवन के हर क्षेत्र में यह पढ़ने की आदत कम या अधिक काम ही आती है। एक आम उपभेक्ता के नाते भी पढ़ने और पढ़ते रहने की आदत बहुत काम आती है। पढ़ने और मनन करने की आदत के कारण ही अनगिनत लोग मशहूर लेखक, पत्रकार आदि सृजनशील व्यक्ति बनाया है।

अनगिनत लोग ऐसे हें जिन्हें सुबह जल्दी अखबार पढ़ने को न मिले तो उनकी बेचैनी और परेशानी देखने योग्य होती है। तमाम टीवी समाचार चैनलों और इन्टरनेट के निरन्तर बढ़ते उपयोग के बावजूद दुनिया भर के छोटे-बड़े समाचारों से अवगत होना बहुत आसान हो गया है। परन्तु अखबार पढ़ने का अपना अलग आनन्द है। एक अलग शौक है। अपने आस-पास और देश-विदेश की खबरें, जानकारी, सूचना आदि जिस प्रकार एक अखबार से हमें मिलते हैं वैसे किसी अन्य माध्यम से नहीं मिल पाते। त्वरित व सीधे समाचार-विचार प्रसारण की दृष्टि से भले ही टीवी का अपना विशेष महत्व है पर वह अनेक दृष्टियों से अखबार की जगह नहीं ले सकता। अखबार पढ़ने का एक विशेष सुख होता है।

हमारे यहां पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अखबार पढ़ने के प्रति कम रुझान देखा जाता है। कमोवेश यही हाल हमारी नयी पीढ़ी का भी है। पढ़ने का अवसर मिलने पर वे फिल्म-टीवी, जीवन शैली या महिलाओं सम्बन्धी सामग्री पढ़ने का ही प्रमुखता देते हैं। महिलाओं का सुबह का समय काफी व्यस्तता भरा होता है। चाय, नाश्ता, खाना आदि बनाना, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, उसके बाद अन्य कामों के साथ-साथ दोपहर और शाम या रात की तैयारी करना। जिन घरों में नौकरानी होती है या कामवाली आती है वहां कुछ सुविधा मिल जाती है। पर बचे हुए समय का सही उपयोग नहीं हो पाता है। रात का काफी समय पिछले कुछ वर्षों से सास-बहू या ऐसे ही अन्य टीवी धारावाहिकों की भैंट चढ़ जाता है। पढ़ने का समय ही कहां बचता है। फिर भी ऐसी अनेक महिलाएं हैं जो अपनी व्यस्त दिनचर्या में से भी पढ़ने का सुख पाने के लिए थोड़ा-बहुत समय अवश्य निकाल लेती हैं।

प्रायः अधिकांश महिलाएं पढ़ने के मामले में यही शिकायत करती हैं कि क्या करें, पढ़ने के लिए समय ही नहीं मिलता! कुछ महिलाओं का कहना है कि रोज अखबार पढ़कर ही हमें आखिर हासिल क्या होना है? हमें कौन से कम्पटीशन में बैठना है या किसी परीक्षा की तैयारी करनी है! सुबह से शाम तक घर-बाहर के काम-काज में खटना है। जबकि घरेलू महिलाओं के लिए अखबार पढ़ना भी काफी उपयोगी सिद्ध होता है। घरेलू महिलाओं को कामकाजी महिलाओं की अपेक्षा कहीं अधिक समय घर में ही गुजारना पड़ता है। बाकी दुनिया से उनका सम्बन्ध अखबार, पत्रिकाओं, टीवी, रेडियो आदि से ही जुड़ा रह सकता है। अपने आसपास की घटनाओं के साथ-साथ देश-विदेश की घटनाओं से अवगत होना हमें जागरूक और एक जिम्मेदार नागरिक बनाता है।

संयुक्त परिवारों के अभाव में घरेलू महिला आज पहले की अपेक्षा कम सुरक्षित हैं। ठग, उठाईगीर, चोर और अन्य
असामाजिक तत्व या अपराधी आज पहले की अपेक्षा अधिक सक्रिय हैं। वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए
तरह-तरह की नयी-नयी तरकीबें आजमाते रहते हैं। लगभग रोज ही अखबारों में इस प्रकार की घटनाओं के
समाचार संक्षेप में या विस्तार से उन असामाजिक तत्वों द्वारा अपनाए गये तरीकों की जानकारी के साथ छपते रहते हैं। ऐसे समाचार घरेलू महिलाओं को जागरूक बनाने के साथ-साथ सावधान भी करते हैं।

जरूरी नहीं कि कोई सारे काम छोड़कर सुबह-सुबह अखबार लेकर बैठ जाए। यदि ऐसा किया जाए तो पूरे परिवार
की दिनचर्या ही बदल जाएगी और अनेक प्रकार की परेशानियां सामने आ खड़ी होंगी। सब अस्तव्यस्त हो जाएगा।
अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां निभते हुए प्रतिदिन कुछ समय अखबार, पत्रिकाएं, अच्छी उपयोगी पुस्तकें पढ़ने निकालना एक अच्छी आदत बन सकती है। इसे अपनी दिनचर्या में मामूली फेरबदल करके असानी से हासिल किया जा सकता है।

यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि बहुत पढ़ लिए और अब पढ़ने में समय क्यों बरबाद करे। ज्यादा पढ़कर करना भी क्या है! अनेक महिलाएं अखबार-पत्रिकाओं में विशेष रूप से भविष्य फल, फैशन, फिल्म-टीवी, सौंदर्य, व्यंजन विधियां, कविता-कहानी आदि विविध सामग्री पढ़ने तक ही सीमित रहती हैं। एक अन्य आकर्षण होता है-सेल या डिस्काउंट के विज्ञापनों का। हालांकि यह भी ग्राहकों को मूर्ख बनाने के चालाकी भरे तरीके हैं। सामान्य ज्ञान, अपने आसपास की छोटी-बड़ी घटनाओं की जानकारी, देश-विदेश की खबरें, फीचर, लेख आदि के साथ-साथ अन्य सामयिक सामग्री की प्रायः अनदेखी की जाती है। सामान्य ज्ञान के अभाव में प्रायः चार लोगों के बीच नजरें चुरानी पड़ती हैं या गलत जानकारी प्रस्तुत करने पर मजाक का पात्र भी बनना पड़ता है।

अनेक क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के बराबर हैं और कुछ क्षेत्रों में उनसे भी आगे हैं। सामान्य ज्ञान, अपने आस-पास के परिवेश और घटनाक्रम से शिक्षित होने पर भी पिछड़ी हुई हैं। सामाजिक विषयों पर चर्चा करना उन्हें प्रायः जमता नहीं है। राजनीति, खेल, व्यवसाय, अर्थ, तकनीक, दूरसंचार, स्वास्थ्य, विभिन्न गतिविधियों आदि के बारे में जानने के प्रति रुचि के अभाव के कारण उनका दायरा सौदर्य, पाक कला, फिल्म-टीवी, फैशन, गृहसज्जा, भविष्य फल आदि तक ही सीमित होकर रह जाता है। सामाजिक-आथिक मुद्दों के बारे में उन्हें तनिक भी जानकारी नहीं हो पाती।

पढ़ने की आदत महिला, पुरुष, युवा, किशोर, प्रौढ़, वृद्ध यानी हर उम्र के लोगों के लिए विभिन्न प्रकार से उपयोगी सिद्ध होती है। नौकरी-व्यवसाय ही नहीं जीवन के हर क्षेत्र में यह पढ़ने की आदत कम या अधिक काम ही आती है। एक आम उपभेक्ता के नाते भी पढ़ने और पढ़ते रहने की आदत बहुत काम आती है। पढ़ने और मनन करने की आदत के कारण ही अनगिनत लोग मशहूर लेखक, पत्रकार आदि सृजनशील व्यक्ति बनाया है। देश में तमाम पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं, इन्टरनेट पर अनेक पोर्टल हैं जिन्हें नियमित रूप से अपने पाठकों के लिए विविध स्तरीय सामग्री की आवश्यकता बनी रहती है। पढ़ते-पढ़ते लिखने को प्रेरित होकर अनेक महिला-पुरुष लेखक बन गये और वे घर बैठे पर्याप्त धन और नाम भी कमा रहे हैं। बिना पूंजी लगाए, बिना कार्यालय या वर्कशाॅप खोले वे अपना काम अपनी सुविधा के अनुसार कर रहे हैं। इस प्रकार के कार्य से जहां सृजनशीलता के साथ आत्मसन्तुष्टि सम्मान तो मिलता ही है, यह धन की प्राप्ति का जरिया भी बन जाता है। यही नहीं कैरियर की दृष्टि से भी पढ़ने-लिखने की आदत बहुत उपयोगी सिद्ध होती है।
टी.सी. चन्दर/www.prabhasakshi.com


ईमानदारी को बनाएं सफलता का आधार
ईमानदारी की राह में कुछ कष्ट-परेशानियां तो आते हैं पर चरित्र की तुलना में ये गौण हैं। व्यक्ति की ईमानदारी उसके लिए स्वयं मार्गदर्शक बनती है। उस व्यक्ति के लिए सिफारिश या परिचय की आवश्यकता नहीं होती। जो कहते हैं कि ईमानदारी का जमाना नहीं रहा, दरअसल वे ईमानदारी और उसके अनमोल गुणों कों पहचानते ही नहीं हैं।

ऐसे अनगिनत लोग हैं जो थोड़ा या कुछ अधिक हासिल करने की खातिर अच्छे मानवीय गुणों की बलि दे चढ़ा देते हैं, भले ही इसका उन्हैं अस्थाई लाभ मिले। अपने पेशे या कार्य क्षेत्र के जानकार या विशेषज्ञ कहे जाने वाले तमाम लोगों में से ऐसे लोगों कों उंगलियों पर गिना जा सकता है जिनमें सहज मानवीय गुण हों, जिनका चरित्र उनके कार्यक्षेत्र से ऊपर हो, ईमानदारी उनका प्रथम परिचय हो। वे अपने सिद्धान्तों को विभिन्न सांसारिक सुख-सुविधाओं -वस्तु-उपकरणों से बहुत ऊपर मानते हों। ऐसे लोग अपने क्षेत्र, कार्यालय, विभाग, प्रतिष्ठान या कार्यक्षेत्र ही नहीं अपने परिवार का भी सम्मान बढ़ाते हैं और उसे एक अलग और अच्छी पहचान देते हैं।

चालाक, तिकड़मी, झूठे, मक्कार,, बेईमान, धोखेबाज, जालसाज, घमंडी, ठग आदि की श्रेणी के लोगों की कमी नहीं है। ऐसे लोग हर काल में कमोवेश रहे हैं, यह जानते हुए भी कि वे जो कुछ कर रहे हैं वह ठीक नहीं है। उनके किए हर अनुचित कार्य का दुष्पतिणाम कम या अधिक परिमाण में स्वयं उनको, परिवार, समाज, कार्यालय, व्यवसाय, प्रतिष्ठान, शहर, प्रांत, देश या मानवता को भुगतना पड़ता है। दाग रहित चरित्र वाले, अपने सिद्धान्तों पर निडर होकर चलने वाले और प्रलोभनों से बचकर चलने वाले लोगों को हर जगह सम्मान मिलता है, दुनिया उन्हैं रास्ता देती है, लोग उन्हैं लम्बे समय तक याद रखतए हैं और उनकी ख्याति निरन्तर नयी दूरियां तय करती है।

ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जिनका कारोबार झूठ, बेईमानी, धोखाधड़ी, चालाकी, तिकड़म और मूर्ख बनाने से ही कुछ सीमा तक या पूरी तक चलता है। ये लोग स्वयं को भले ही धनाड्य, प्रभावशाली, प्रतिष्ठित, दानदाता, सुख-सुविधा सम्पन्न आदि मानते हो पर असलियत वे स्वयं और उनका ईश्वर दोनों भलीभांति जानते हैं। वास्तविकता यह है कि उनसे अपना स्वार्थ साधने वाले लोग भी उनका हृदय से सम्मान नहीं करते। वे ढहते हुए एक रेत के महल पर खड़े हुए हैं। उन्हैं इस बात का सदा भय रहता है कि अनुचित ढंग से कमाए हुए धन की कहीं जांच न शुरू हो जाए और लोगों के सामने कहीं उनका वास्तविक रूप न आ जाए। ऐसे अनेक उदाहरण लोगों के सामने आते रहते हैं जिनसे वे उन कथित सम्मानित लोगों का असली चेहरा देख लेते हैं। फिर भी धूर्त और बेईमान लोग अपने सम्मानित होने का भ्रम पाले रहते हैं।

दूसरी ओर निर्मल हृदय, सच्चरित्र, ईमानदार और खुली किताब की तरह रहने वाले लोग अपने समाज, सहयोगियों, परिवार, कार्यस्थल, प्रतिष्ठान आदि के लिए गौरव का विषय होते हैं। वे निर्भय होकर अपना काम करते हैं और निश्चिंत होकर गहरी नींद सोते हैं। अपने आप से वे अपराध बोध से ग्रस्त नहीं होते। उनका दुहरा चरित्र नहीं होता, अभाव उन्हैं विचलित नहीं कर पाते और उन्हैं विभिन्न भौतिक वस्तुओं की कमी नहीं अखरती। पारदर्दर्शी जीवन जीने वाले ऐसे निष्कलंक लोगों को अपनी किसी वस्तु के चोरी हो जाने का कभी भय नहीं होता क्योंकि जो कुछ सम्पदा उनके पास है उसे कोई चुरा नहीं सकता। कोई भय या प्रलोभन उन्हैं अपने मार्ग से हटा नहीं सकता। देर-सबेर सफलता, ख्याति, लोगों का स्नेह और शुभकामनाएं व सुख उन्हैं ही मिलते हैं।

आज विशेष रूप से युवाओं में यह बात अपनी पैठ बना रही है कि अब ईमानदारी का जमाना नहीं रहा। हर जगह बेईमान और बेईमानी का बोलबाला है। सब धन के बल पर या शार्टकट से मिल जाता है। वे अपने आसपास मौजूद अनगिनत सुविधासम्पन्न लोगों को देखकर ऐसा भ्रम पाल लेते हैं। ऐसे में शिक्षित, विचारशील, कर्तव्यनिष्ठ और समाज व देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने वाले लोगों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। युवाओं को यह समझाना जरूरी है कि बेईमानी से अर्जित उपलब्धियां कभी स्थाई नहीं होतीं, यही नहीं ऐसी उपलधियां अपने साथ तमाम परेशानियां और असम्मानक स्थितियां या उनकी सम्भावना साथ लेकर आती हैं।

यह सही है कि आज अनगिनत लोग बेईमानी के बल पर सुख-सफलता का आनन्द दे रहे हैं पर इस अल्पजीवी सुख का अन्त अन्ततः दुःख और प’चाताप के रूप में ही होता है। यह कितने आश्चर्य की बात है कि बेईमान अधिकारी या मालिक अपने अधीनस्थ या कर्मचारी में ईमानदारी, सच्चरित्रता, कर्तव्य परायणता आदि सदगुणों को अनिवार्य रूप में चाहते हैं। वे भी जानते हैं कि ईमानदारी एक प्रमुख मानवीय गुण है और बेईमानी अल्पजीवी होती है।

ईमानदारी की राह में कुछ कष्ट-परेशानियां तो आते हैं पर चरित्र की तुलना में ये गौण हैं। व्यक्ति की ईमानदारी उसके लिए स्वयं मार्गदर्शक बनती है। उस व्यक्ति के लिए सिफारिश या परिचय की आवश्यकता नहीं होती। जो कहते हैं कि ईमानदारी का जमाना नहीं रहा, दरअसल वे ईमानदारी और उसके अनमोल गुणों कों पहचानते ही नहीं हैं। ईमानदारी केवल रुपये-पैसे की नहीं होती। ईमानदारी का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है और यह स्वयं में एक व्यापक अर्थ समेटे हुए होती है। यह व्यक्ति के आत्मसम्मान और आत्मवि’वास की सर्वश्रेष्ठ रक्षक होती है।

लगभग हर क्षेत्र में ईमानदारी एक भारी शब्द है जिसका हमेशा महत्व तथा सम्मान रहा है और रहेगा। ईमानदार, धैर्यवान, परिश्रमी, उत्साही, और व्यवहारकुशल व्यक्ति को आगे बढ़ने से, सफल होने से और अपना लक्ष्य पाने से कोई रोक नहीं सकता। यह ध्यान रखना चाहिए कि बेईमानी, धोखाधड़ी, छल-कपट आदि का एक न एक दिन भंडाफोड़ अवश्य होता है उस घाटे की स्थिति की क्षतिपूर्ति किसी तरह सम्भव नहीं है। ऐसे में चार दिनों की चांदनी फिर अंधेरी रात वाली बात निर्विवाद रूप से सामने आती है।
टी.सी. चन्दर/www.prabhasakshi.com
लक्ष्य प्राप्ति के लिए जरूरी है लगन

एकाग्रता और लगन की भूमिका लक्ष्य प्राप्ति में बहुत
महत्वपूर्ण होती है। इनके अभाव में पिछड़ जाएंगे।
मन को भटकने से रोकने और सही दिशा में
लगाए
रखने का प्रयास जारी रहना ही
यह सभी जानते हैं कि हर सफल व्यक्ति को सफलता किसी जादू के डंडे से नहीं मिली है। सफल होने के लिए निरंतर मेहनत करनी पड़ती है। इसके साथ ही धैर्य, लगन, आत्मविश्वास, उत्साह, समय का सदुपयोग, पूरी क्षमता, समर्पण, समय और परिस्थिति के अनुसार कार्य, शीघ्र निर्णय की क्षमता, साधारण मानवीय गुण आदि का होना भी आवश्यक है। इन बातों पर ध्यान देकर अपनाने से सफलता और लक्ष्य प्राप्ति की राह आसान हो जाती है।

आपकी रूचि जिस क्षेत्र में है उसी में आगे बढ़ने से आप अपनी क्षमताओं का सही उपयोग कर पायेंगे। पर आज के भरी प्रतिस्पर्द्धा के समय में अपने चुने क्षेत्र के मिलते-जुलते विकल्प जरूर रखना चाहिए। आवश्यक हो तो इस मामले में अपने परिचित किसी अनुभवी योग्य व्यक्ति या संस्था से सलाह भी ली जा सकती है। यदि आप अपनी क्षमताओं का पूरे उत्साह के साथ उपयोग करेंगे तो आपको निश्चय ही विस्मयकारी सुखद परिणाम प्राप्त होंगे।

किसी क्षेत्र विशेष की चमक-दमक से प्रभावित होकर ही उस क्षेत्र में जाना जरूरी नहीं सुफलदाई सिद्ध हो। अनिच्छा से या औरों की इच्छा की पूर्ति के लिए भी किसी क्षेत्र को न अपनाएं। अन्यथा आपके हाथ पछताने के सिवा कुछ नहीं आयेगा। अपनी पसंद के क्षेत्र का चयन कर आगे बढ़ने से आप बेहतर एकाग्रता के साथ अपना काम कर पायेंगे।

एकाग्रता और लगन की भूमिका लक्ष्य प्राप्ति में बहुत महत्वपूर्ण होती है। इनके अभाव में पिछड़ जायेंगे। मन को भटकने से रोकने और सही दिशा में लगाए रखने का प्रयास जारी रहना ही चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि आप बार-बार सफलता पा लेने के बाद मिलने वाली ख़ुशी के बारे में भी सोचते रहें। सो आशावादी बने रहकर अपने काम में पूरी ईमानदारी के साथ जुटे रहें।

विशेष रूप से सुबह का समय यूँ ही न गंवाएं। देर रात तक पढ़ना या काम करना और सुबह देर से उठना ठीक नहीं, हाँ कभी परिस्थितिवश ऐसा करना पड़े तो बात और है। अपनी दिनचर्या को समय विभाजन कर लिखें, उसी के अनुसार चलें। रोजाना सुबह घूमना, व्यायाम-योग करना, सही खानपान (यथासंभव शाकाहारी), सही ढंग से बैठना, क्रोध-ईर्ष्या-बुराई-झूठ से बचना, सभी से अच्छा व्यवहार करना आदि जैसी बातें भी लक्ष्य प्राप्ति में पर्याप्त सहायक सिद्ध होती है।

कभी अनेक विषयों को मिलाएं नहीं। यदि आपके सामने विषय 'क' है तो 'ख' की ओर न जाएँ। अन्यथा आप न 'क' पर और न ही 'ख' पर ध्यान केन्द्रित कर पाएंगे। इससे आपकी एकाग्रता और लगन में भी बाधा आयेगी। विषय और समय का निर्धारण अपनी जरूरत के अनुसार करें और अपने कार्यक्रम का पालन भी करें। रोजाना पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार चलाने से राह और आसान हो जायेगी। एक खास बात और, कभी अपना और दूसरों का समय बरबाद करने वाले लोगों से सदा सावधान और बचकर रहें। प्रतिदिन देश-दुनिया के बारे में से खुद को जोड़े रखें, यह कार्य थोड़ा समय देकर आसानी से किया जा सकता है जो अनेक प्रकार से काम का सिद्ध होता है।

* ता. च. चन्दर

तनमन

विवेक जाग्रत होने पर मिलता है सुख

विवेक के अभाव में हम अपने कर्त्तव्यों का भलीभांति पालन नहीं कर पाते। अपनी इच्छाओं और वासनाओं के वशीभूत होकर इच्छानुसार कार्य करते रहकर सुख पाने का भ्रम पाले हुए जीवन बिता देते हैं। विवेक जाग्रत हो जाए तो अनेक अनर्थ स्वतः टल जाते हैं। बुरे कार्य और आदतें एक झटके में छूट जाते हैं जिससे अपने साथ-साथ औरों को सुख मिलता है।

हमारे लगभग सभी दुःखों, क्लेशों, अनर्थों आदि के मूल में विवेक की ही बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विवेक की कमी के कारण या अपनी विवेक शक्ति का समुचित उपयोग न कर पाने के कारण ही हम अनेक प्रकार के कष्ट भोगते हुए पश्चाताप की आग में जलते रहने को विवश होते हैं।
सृष्टि का निर्माण जड़ और चेतन के मेल से हुआ है। परमात्मा चेतन है और जगत जड़ है। सुख-दुःख, लाभ-हानि, अच्छा-बुरा, जीवन-मरण आदि आपस में घुलमिल गये हैं। इनमें से सार-असार, नित्य-अनित्य, जड़-चेतन, उपयोगी अनुपयोगी आदि को अलग-अलग कर समझने की हितकारी कला का नाम ही विवेक है।
सत्, असत्, शाश्ववत, नश्वर, नित्य, अनित्य आदि का विवेक हो जाने पर अनेक प्रकार के दुःखों से सहज ही बचा जा सकता है। सत्संग, स्वाध्याय, ध्यान और चिन्तन-मनन से विवेक को जाग्रत तथा परिपक्व किया जा सकता है। विवेक परिपक्व होने पर जगत के व्यवहार का अनुभव भी बदल जाता है। वह सुखद और शीतल हो जाता है। तब दुःख दुःख नहीं रहता, चिन्ता से मुक्ति मिल जाती है के साथ-साथ दैवी आनन्द की प्राप्ति होती है।
होता यह है कि हम प्रायः विवेक की अनदेखी कर या उस पर पर्दा डालकर अनगिनत क्रियाकलापों में लिप्त रहते हैं। विवेक के अभाव में हम अपने कर्त्तव्यों का भलीभांति पालन नहीं कर पाते। अपनी इच्छाओं और वासनाओं के वशीभूत होकर इच्छानुसार कार्य करते रहकर सुख पाने का भ्रम पाले हुए जीवन बिता देते हैं। विवेक जाग्रत हो जाए तो अनेक अनर्थ स्वतः टल जाते हैं। बुरे कार्य और आदतें एक झटके में छूट जाते हैं जिससे अपने साथ-साथ औरों को सुख मिलता है।
जिसे हम अपने विवेक के अनुसार बुरा निर्धारित कर देते हैं, उससे मुक्ति भी पाना चाहते हैं और मुक्त होकर सुख भी पाना चाहते हैं। मगर परेशानी तब होती है जब हम अपने कमजोर मन और इच्छाशक्ति के बल पर उस बुराई से धीरे-धीरे यानी किस्तों में मुक्ति पाने की जुगत भिड़ाते हैं। इससे असफलता के सिवा कुछ प्राप्त नहीं होता। अपने विवेक का उपयोग करते हुए समय बरबाद किये बिना एक झटके से बुराई से मुक्त होने में ही भलाई है। निरन्तर टालते जाने से किसी प्रकार का लाभ नहीं होने वाला। इसके लिए धुन का पक्का होना बड़े काम आता है।
विवेकी व्यक्ति ही सच्चा सुख पाने में सदा समर्थ और सफल होता है।
टी.सी. चन्दर/
rabhasakshi.com


सावधान रहिए गर्मी के मौसम में
भूलकर भी बाजार में उपलब्ध बहुप्रचारित बोतलबन्द कोला या अन्य शीतल पेयों का सेवन नहीं करना चाहिए। ये शीतल पेय शरीर को अनेक प्रकार से हानि पहुंचाते हैं, विशेष रूप से बच्चों को इन शीतल पेयों से बच्चों को बचाना चाहिए। किसी प्रकार से लाभ पहुंचाने की बजाय ये पेय बच्चों के विकसित होते शरीर और हड्डियों के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं। आज अधिकांश बच्चे फास्ट फूड और इन शीतल पेयों के निरंकुश उपयोग के कारण मोटापे और कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। निम्न, मध्य और सम्पन्न परिवारों में इन्हीं घातक शीतल पेयों का प्रचलन बढ़ रहा है। निःसन्देह ये पेय गैरजरूरी और हानिकारक हैं। इनसे तात्कालिक रूप से कुछ राहत तो मिलती है पर अन्ततः हानि ही अधिक पहुंचाते हैं।
गर्मी के मौसम में तेज धूप रीर और ज्ञान तन्तुओं के लिए हानिकारक होती है। किसी जरूरी कार्यवश यदि धूप में बाहर निकलना ही पड़े तो आवश्यक उपाय करके ही जाना चाहिए ताकि तेज धूप, लू आदि से बचाव हो सके। सुबह उठकर शौच जाने से पहले चाय की जगह पिया गया 1-4 गिलास सादा पानी पूरे दिन शरीर के काम आता है। घर से निकलने से पहले भी पर्याप्त मात्रा में साफ पानी अवश्य पीना चाहिए। लू से बचाव का यह एक सहज उपाय है। कभी धूप में चलकर आते ही पानी या शीतल पेय नहीं पीना चाहिए। कम से कम 10-15 मिनट छाया में रुकना चाहिए। देर रात तक कभी जागना भी पड़े तो 1-1 घंटे बाद पानी पीते रहना चाहिए। इससे पित्त व कफ के प्रकोप से बचाव रहेगा। सुबह जल्दी जागकर प्रातःकाल की शीतल हवा का सेवन करना चाहिए। सीधी धूप से बचाव रखें। सिर में बादाम रोगन, चमेली, नारियल या लौकी के बीजों का तेल लगाएं। भारी, बासी, दूषित और गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए। इसके अलावा आवश्यकता से अधिक भोजन भी नहीं करना चाहिए।

जिन लोगों की पाचन शक्ति कमजोर है यानी प्रायः कब्ज बनी रहती है उन्हैं छिलके सहित मूंग की दाल और चावल (बराबर मात्रा में या दाल कुछ अधिक लें) से धीमी आंच पर बनी खिचड़ी ही भोजन के रूप में लेनी चाहिए। खिचड़ी के साथ चटनी या थोड़े दही का उपयोग भी किया जा सकता है। खिचड़ी के सेवन से जल्दी ही पाचन संस्थान ठीक हो जाता है। रात को जल्दी भोजन करना और भोजन के बाद कुछ समय टहलना भी जरूरी है। खासतौर पर शाम या रात को भारी और देर से पचने वाला तेज मिर्चमसाले युक्त भोजन नहीं करना चाहिए। अन्यथा कब्ज, गैस, एसिडिटी आदि व्याधियां सामने आ खड़ी होती हैं। इसलिए मौसम के अनुसार उपयुक्त और सुपाच्य भोजन को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। मौसमी कच्ची खाई जा सकने वाली फल-सब्जियों का सेवन नियमित रूप से अवश्य करना चाहिए। इन बातों का हर मौसम में ध्यान रखना और गर्मी के मौसम में खास ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

दिनभर में कई बार पानी, शर्बत या अन्य तरल पदार्थ लेते रहना आवश्यक होता है अन्यथा शरीर में पानी की कमी हो जाती है। धूप से बचाव के लिए सिर पर कोई कपड़ा, टोपी, साफा, पगड़ी रखनी चाहिए या छतरी से छाया रखनी चाहिए। दोपहर के बाद शर्बत, शिकंजी, ठण्डाई, फलों का रस, ताजा दही से बनी मीठी या नमकीन लस्सी, बेल का शर्बत आदि तरल पदार्थ सुविधानुसार लेने चाहिए। भूलकर भी बाजार में उपलब्ध बहुप्रचारित बोतलबन्द कोला या अन्य शीतल पेयों का सेवन नहीं करना चाहिए। ये शीतल पेय शरीर को अनेक प्रकार से हानि पहुंचाते हैं, विशेष रूप से बच्चों को इन शीतल पेयों से बच्चों को बचाना चाहिए। किसी प्रकार से लाभ पहुंचाने की बजाय ये पेय बच्चों के विकसित होते शरीर और हड्डियों के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं। आज अधिकांश बच्चे फास्ट फूड और इन शीतल पेयों के निरंकुश उपयोग के कारण मोटापे और कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। निम्न, मध्य और सम्पन्न परिवारों में इन्हीं घातक शीतल पेयों का प्रचलन बढ़ रहा है। निःसन्देह ये पेय गैरजरूरी और हानिकारक हैं। इनसे तात्कालिक रूप से कुछ राहत तो मिलती है पर अन्ततः हानि ही अधिक पहुंचाते हैं।
गर्मी के मौसम में चलने वाली आग की लपट सी लू शरीर को काफी नुकसान पहुंचाती है। सूरज की तेज गर्मी के कारण पृथ्वी का जलीय अंश कम होता जाता है जिससे मनुष्य को अपने ’ारीर के सौम्य अंश को सही रूप में बचाए रखने के लिए खूब पानी के अलावा पोषक और ठंडक देने वाले तरल पदार्थों का नियमित सेवन करते हुए अपने खानपान का भी ध्यान रखना जरूरी हो जाता है। इस मौसम में ठण्डाई, सत्तू, शर्बत, शिकंजी, लस्सी, खीर, दूध की लस्सी, छिलकायुक्त मूंग की दाल, घिया (लौकी), ताजी बनी चोकर सहित मोटे आटे की रोटी, पोदीना, चैलाई, परवल, केले की सब्जी, अनार, अंगूर, नींबू, तरबूज, ककड़ी, तरबूज के छिलकों की सब्जी, हरा धनिया, कैरी (कच्चा आम) को भून या उबालकर बनाया गया मीठा पना, गुलकन्द, पेठा, बेल का शर्बत आदि के सेवन का खास ध्यान रखना चहिए।
वात-पित्त के प्रकोप से बचाव के लिए हरड़ के साथ गुड़ का सेवन करना चाहिए। गर्मी में तीखे, खट्टे, कसैले, तेज मिर्चमसाले व तले पदार्थ, चाट-पकौड़ी, अमचूर, अचार, सिरका, शराब, अधिक ठंडे पदार्थ आदि से बचकर रहना ही अच्छा है। फ्रिज के अधिक ठंडे पानी के स्थान पर मिट्ठी से बनी सुराही या घड़े में रखा ठंडा पानी ही पीना चाहिए जो हमारे शरीर की आव’यकता के सर्वथा अनुरूप् होता है। अन्यथा सर्दी-जुकाम, गले की परेशानी, टांसिल दांतों-मसूढ़ों की कमजोरी आदि व्याधियों से दो-चार होना पड़ सकता है। देर रात तक जागने, सुबह देर तक सोने, अधिक शारीरिक श्रम करने, दिन में सोने, भूखा-प्यासा रहने आदि इस मौसम में खास तौर से बचना चाहिए।
इस प्रकार कुछ सावधानियां और कुछ सुरक्षात्मक उपाय अपनाने से गर्मी के मौसम का कष्ट कम करते हुए समुचित आनन्द उठाया जा सकता है।
टी.सी. चन्दर/www.prabhasakshi.com



मुस्कान में ना नुकसान
शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति भी प्रसन्नता और हंसी का दामन थामकर नयी
ऊर्जा और शक्ति पा लेता है। मन में प्रसन्नता, चेहरे पर मुस्कान और हंसी हमारे
शरीर की विभिन्न क्रियाओं को सुचारु रूप से कार्य करने को प्रेरित करती हैं।
इससे हमारा तन और मन दोनों स्वस्थ हो जाते हैं।

हर व्यक्ति के जीवन में दुख-अवसाद कभी न कभी आते ही हैं। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसने कभी दुख या परेशानी न झेली हो। विपत्ति ने उसे कष्ट न पहुंचाया हो। लेकिन दुख, कष्ट, परेशानी, विपत्ति आदि के दिन हमेशा नहीं रहते। अमावस के बाद उजियारी रात आती ही है। अँधेरे के बाद उजाला आना निश्च है, जो पूरे जगत को रोशनी से भर देता है। इसी तरह हमारी मुस्कान, प्रसन्नता और हँसी हमें ही नहीं, हमारे सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करती है, उन्हें सुख प्रदान करती है। सुख और दुख हर व्यक्ति के जीवन में आते और जाते रहते हैं, जो दोनों ही में प्रसन्नता, मुस्कान और हासपरिहास का दामन न छोड़े वही सुखी जीवन बिता सकता है।
हंसी ही मनुष्य की आन्तरिक प्रसन्नता को प्रकट करती है। इससे समस्त शरीर की रक्तवाहिनियाँ सक्रिय हो जाती हैं जिससे उनका अच्छा व्यायाम हो जाता है। रक्तप्रवाह बढ़ जाता है। श्वांस संस्थान ताजादम हो जाता है। आंखों में चमक आ जाती है। फ़ैंफड़े ताजी हवा पाते हैं, गंदी हवा बाहर निकल जाती है। इस प्रकार हंसी समस्त शरीर की क्रियाओं को सुचारु बना देती है। जब ऐसा होता है तो शरीर स्वस्थ रहता है। यानी स्वस्थ शरीर के लिए हंसी और प्रसन्नता बिन मोल के सर्वश्रेष्ठ विटामिन हैं जो किसी खेत या फेक्टरी से नहीं मिल सकते। आ कहना है कि प्रसन्नचित्त लोग ही चिरकाल तक जीवित रहते हैं। शारीरिक रूप से ही नहीं, मन से और यश-नाम से भी वे ही लोगों की स्मृति में रहते हैं जो खुश रहते हैं। गुस्सैल, चिढ़चिढ़े, मायूस, दुखड़े सुनाने वाले और चिंतित दिखने वाले लोगों लो भला कौन याद रखेगा! इस तरह हंसमुख प्रसन्न रहने वाले लोगों को ईश्वर प्रदत्त आयु के बाद भी लंबे समय तक रिश्तेदार, मित्र तथा शुभचिंतक जिंदा बनाए रखते हैं।
एक रोगी भी अपने डॉक्टर से उम्मीद करता है कि वह हंसमुख हो। अपनी खुशमिजाजी से एक चिकित्सक अपने रोगी को दी जाने वाली दवाओं का असर बढ़ा देता है और वह जल्दी ठीक रोगमुक्त करता है। क्रोध, चिंता, तनाव, चिढ़चिढ़ापन, अंहकार आदि जिस चिकित्सक में होंगे वह अच्छा चिकित्सक हो ही नहीं सकता। उल्लेखनीय है कि आधे से अधिक रोग मानसिक ही होते हैं। हर रोगी की चाहत होती है कि उससे कोई दो पल हंसकर बात कर ले, मुस्कराए। इस 'दवा' से अनेक गंभीर मानसिक रोगी अपेक्षाकृत कम समय में ठीक हो जाते हैं।
शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति भी प्रसन्नता और हंसी का दामन थामकर नयी ऊर्जा और शक्ति पा लेता है। मन में प्रसन्नता, चेहरे पर मुस्कान और हंसी हमारे शरीर की विभिन्न क्रियाओं को सुचारु रूप से कार्य करने को प्रेरित करती हैं। इससे हमारा तन और मन दोनों स्वस्थ हो जाते हैं। झगड़ालू, घमंडी, स्वार्थी, क्रोधी जैसे व्यक्ति घर-परिवार के साथ-साथ समाज के लिए भी ठीक नहीं होते। सो, मुस्कान है सबके लिए वरदान!
प्रसन्नता आयु बढ़ाती है, यौवन लाती है, आशाएं लाती है, नयी ऊर्जा का संचार करती है। फोटोग्राफर भी यूँ ही नहीं कहता-स्माइल प्लीज या ज़रा मुस्कुराइए! चेहरा किसी का भी हो, मुस्कराता हुआ चेहरा सबको पसंद आता है। इससे मुस्कान का गुणात्मक प्रचार-प्रसार भी होता है।
मुस्कान के अलावा खूब खुलकर हंसने के किसी अवसर को हाथ से मत जाने दीजिए और सदा ऐसे मौकों की तलाश में रहिए। दिल से मुस्कुराइए। इस आनंद और अनूठे संगीत का आनंद आपके साथ-साथ सभी उठाएंगे। आपके रोने-झींकने में कोई साथ देने वाला नहीं होगा।
स्वेट मार्डेन ने कहा है कि हंसी के फूल ही तो सफलता के फल होते हैं। रोजाना कई बार खुलकर हंसने का नियम बनाइए। अपने चेहरे से मुस्कान हटने मत दीजिए। परिवर्तन आपको खुद दिखाई देगा। आपकी मुस्कान और हंसी के आगे कष्ट और परेशानियाँ टिक ही नहीं सकते। प्रसन्नता, मुस्कान और हंसी को अपने तन-मन में बसाइए और निश्चिंत हो जाइए।

* ता.च. चन्दर

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व्यायाम को बनाएं दिनचर्या का हिस्सा

'पहला सुख निरोगी काया' वाली बात मात्र सुनने-कहने के लिए नहीं, अपनाने के लिए होती है। कुछ सामान्य स्वास्थ्य नियमों को अपनाने से ही पर्याप्त लाभ प्राप्त किया जा सकता है। प्रतिस्पर्द्धा के इस युग में तमाम ऐसी स्तिथियों का सामना करना पङता है जो अनचाही पर अनिवार्य होती हैं मानसिक और शारीरिक तनाव से सामना होना सामान्य बात है।


'क्या करें, समय ही नहीं मिलता।' यही बात प्राय: सुनने को मिलती है। अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अधिकांश लोगों के पास समय नहीं। पर थोड़ा ध्यान देने पर ही असलियत सामने आ जाती है। गपशप और ऐसे ही कुछ अन्य कार्यों के चलते लोगों के पास समय ही नहीं बचता। वैसे इसके मूल में है इच्छाशक्ति की कमी और अपने ही हित की अनदेखी करना। दरअसल आज समय की कमी दिखाना भी एक फैशन जैसा बन गया है।

घटना-दुर्घटना आदि को छोड़ अस्वस्थ होने पर डाक्टर की शरण में जाना सामान्यत: टाला जा सकता है। आज की व्यस्त, भागमभाग, तनावभरी दिनचर्या में से थोड़ा समय अपने शरीर के लिए निकालना अब और भी जरूरी हो गया है। इसमें टालमटोल करना अपने पैर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। आवश्यक कार्यों, गपशप, मनोरंजन, स्वादिष्ट खानपान आदि के साथ-साथ सुन्दर शरीर के लिए भी कुछ समय तय करना जरूरी है। नि:संदेह यह समय थोड़े व्यायाम के लिए देना घाटे का सौदा नहीं होगा।

'पहला सुख निरोगी काया' वाली बात मात्र सुनने-कहने के लिए नहीं, अपनाने के लिए होती है। कुछ सामान्य स्वास्थ्य नियमों को अपनाने से ही पर्याप्त लाभ प्राप्त किया जा सकता है। प्रतिस्पर्द्धा के इस युग में तमाम ऐसी स्तिथियों का सामना करना पङता है जो अनचाही पर अनिवार्य होती हैं मानसिक और शारीरिक तनाव से सामना होना सामान्य बात है। हड़बड़ी, बदली हुई खानपान की आदतों और जीवनशैली के कारण प्राय: कई परेशानियों से दो-चार होना पङता है। थोडी सी जागरूकता, सावधानी, कुछ नियमित व्यायाम, योग, प्राणायाम, टहलना आदि अपनाकर वर्त्तमान तथा आने वाले जीवन को सुखद बनाया जा सकता है।

कब्ज़, जोडों का दर्द, रक्तचाप, रक्त प्रवाह आदि से जुडी तमाम समस्याएँ से नियमित व्यायाम ही मुक्त रख सकता है. उचित व्यायाम से रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आता है. मधुमेह जैसी बीमारी पर भी अंकुश है. शरीर में उत्साह और स्फूर्ति का संचार बना रहता है. शरीर स्वस्थ, सुडौल तथा सुन्दर बना रहता है. चेहरे का सौन्दर्य और तेज आपके श्रीमुख के बारे में खुद पूरा परिचय दे देता है।

असंतुलित, अनुचित, अपोषक, अधिक चिकनाईयुक्त आदि जैसे भोजन से मोटापे का आगमन होता है जो स्वयं ही एक बड़ी बीमारी है। शरीर में पोषक तत्वों की कमी के परिणाम देरसबेर सामने आते ही हैं। आज युवा शीघ्र अपने शरीर को गठीला बनाकर प्रदर्शन करने के लिए जिम और तरह-तरह के पाउडर-दवाओं को अपनाते हैं। शरीर को गठीला बनाने की अंधी दौड़ में वे अपने लाभ-हानि की और अपेक्षित ध्यान नहीं देते हैं। बिना सही-गलत की जानकारी प्राप्त किये शीघ्र जोरदार परिणाम पाने के लिए जरूरत से ज्यादा कसरत करते रहते हैं। जबकि योग्य प्रशिक्षक की देखरेख और निर्देशन में ही व्यायाम करना चाहिए। अन्यथा कभी-कभी ऐसी हानि उठानी पड़ जाती है जिसकी भरपाई कर पाना भी कठिन हो जाता है।

किसी अच्छी पुस्तक या योग्य प्रशिक्षक से पर्याप्त जानकारी प्राप्त करने के बाद शुभारम्भ करना चाहिए। प्राणायाम आदि की विभिन्न क्रियाएँ अपनाना लाभदायक होता है। इसके साथ-साथ जल्दी सोना, जल्दी जागना, सुबह उठने पर 2-3 गिलास आवश्यकतानुसार सादा या गुनगुना पानी पीना, व्यायाम, नाश्ता, भोजन आदि के बारे में तय करना ही चाहिए। नाश्ते में दूध, दही, अंकुरित अनाज-दाल, दलिया, फलों का रस आदि को ही प्रमुखता देना चाहिए। भोजन शाकाहारी ही बेहतर होता है। हरी सब्जियों, दालों, दही, मौसमी फल और सब्जियों, मोटे आटे (चोकर सहित) से बनी रोटियों को भोजन में प्रमुखता दें। इसके लिए किसी अच्छी पुस्तक या डायटीशियन से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

* ता.च. चन्दर

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पुस्तक परिचय Pustak Parichay

बृहत तुकान्त राशि
राजधानी के जानेमाने गज़लकार और पत्रकार देवेन्द्र माँझी के अनेक सालों के सतत परिश्रम, धैर्य, सूझबूझ और लगन का सुखद परिणाम ' बृहत तुकान्त राशि' के रूप में सामने आया है। इस अनूठी पुस्तक को दिल्ली के मंजुली प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। यह कृति साहित्य जगत और साहित्यप्रेमियों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। यह एक महत्वपूर्ण बहुउपयोगी शब्द कोश भी है।
आज के व्यावसायिक समय में जहाँ विज्ञापन का बोलबाला है, यह बृहत तुकान्त राशि विज्ञापन के क्षेत्र में तुकान्त शब्दों की आवश्यकता को पूरा करने में भी कसौटी पर खरी उतरेगी। हिन्दी-अंग्रेजी सहित डेढ़ दर्ज़न से भी अधिक भाषाओं के प्रचलित-अप्रचलित शब्दों को इसमें शामिल किया गया है।
पिछले दिनों नयी दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में बृहत तुकान्त राशि को लोगों की सराहना के साथ अच्छा प्रतिसाद मिला। अभी इसका प्रथम खण्ड प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तक के कुल 6 खण्ड प्रकाशित होंगे।
प्रकाशक- मंजली प्रकाशन, पी-04, पिलंजी , सरोजिनी नगर, नयी दिल्ली-110023 (भारत) +919810667195, 9213710070
< देवेन्द्र माँझी * ता च चन्दर
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रविवार, 11 नवंबर 2007

हासपरिहास Haasparihaas

आप अपने रचे/सुने/पढे़ बढ़िया चुटकुले हिन्दी/रोमन/अंग्रेजी में ई-मेल द्वारा भेजें। इससे और अधिक आनन्द चारों ओर फ़ैलेगा। अपना नाम और स्थान अवश्य लिखें। Aap apne rache/padhe/sune Badhiyaa Chutkule Hindee/Roman/Angrejee (English) men e-mail dwaaraa bhejen. Apnaa NAAM aur STHAAN awashy likhen. सम्पर्क Contact : युवाउमंग
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हिसाब
नेताजी अपने नालायक पुत्र को डांट रहे थे-जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो मैंने चारा स्टोर में केवल 50 रुपये महीने पर नौकरी शुरू की थी। फिर मैंने वहीं करोड़ों रुपये कमाये....

पुत्र बोला-पर पिताजी, अब ऐसा सम्भव नहीं है।

‘क्यों?’

‘क्यांकि अब वहां क्लोज सर्किट टीवी लगे हुए हैं और पूरा हिसाब रखा जाता है।’

Hisaab

Netaajee apane naalaayak putra ko daant rahe the- Jab mein tumharee umr kaa thaa to meine caaraa stor men keval 50 rupaye kee naukaree shuroo kee thee. Fir meine waheen karodon rupaye kamaae...

Putra bolaa-Par ab aisaa sambhav naheen hai.

'kyon?'

'Kyonki ab wahaan kloj sarkit tv lage hue hain aur pooraa hisaab rakhaa jaataa hai.

080521

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शर्म
चुनाव हारने के बाद नेताजी और उनकी पत्नी बातचीत कर रहे थे। पत्नी-शुरू के 5 साल तो तुमने बड़ी ईमानदारी से काम किया। उसके बाद बीते 10 सालों में तुम हेराफेरी, बेईमानी, लूटखसोट और चोरीचकारी पर उतर आये....तुम्हें शर्म नहीं आयी!

‘इसमें “शर्म की क्या बात है?’
‘आखिर शुरू के 5 साल तुमने क्या सोचकर बरबाद किये?’

Sharm
Chunaav haarane ke baad netaajee aur unakee patnee baatcheet kar rahe the. Patnee-Shuroo ke 5 saal to tumane badee eemaandaaree se kaam kiyaa. Usake baad beete 10 saalon men tum heraaferee, beeemaanee, lootkhasot aur chreechakaaree par utar aae...tumhen sharm naheen aayee!
'Ismen sharm kee kyaa baat hai!'
'Aakhir shuroo ke 5 saal tumane kyaa sochkar barbaad kar diye?'
*Cartoon © TC Chander 2008, New Delhi, India
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पागल
‘बहन, यदि कोई पागल आपको काट ले तो आप क्या करेंगी?’
‘आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरे पति के बारे में इस तरह बोलने की!’
Paagal
`Bahan, yadi koee paagal aapako kaat le to aap kyaa karengee?'
`Aapkee himmat kaise huee mere pati ke baare men is tarah bolane kee!
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स्वर्ग
संयोगवश मुंगेरी सपत्नीक स्वर्ग पहुंच गये। वहां 24 घंटे बिजली-पानी, चारों ओर फ़ब्बारे, शानदार रहनसहन, हर तरह की सुख-सुविधाएं देख मुंगेरी को आनन्द आ गया। अचानक एक दिन उन्होंने पत्नी को एक जोरदार झापड़ मार दिया। पत्नी ने चकराकर पूछा-क्यों मारा जी?
‘दुष्ट, तूने मेरी सिगरेट और शराब क्यों छुड़ायी? अगर न छुड़ाती तो मैं बीस साल पहले यहां आकर मजे कर रहा होता!
Swarg
Sanyogwas Mungeree sapatneek swarg pahunche gaye. Wahaan 24 ghante bijalee-paanee, charon or fabbaare, shaandaar rahansahan, har tarah kee sukh-suvidhaaen dekh Mungeree ko aanand aa gayaa. Achaanak ek din unhonne patnee ko jordaar jhapad maar diyaa. Patnee ne chakaraakar poochha-kyon maaraa jee?
`dusht, toone meree sigret aur sharaab kyon chhudaayee? Agar na chhudaatee to mein bees saal pahale hee yahaan aakar maje kar rahaa hota!'
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मुंह
‘तुम खाना किस तरह खाते हो?’
‘दायें हाथ से!’
‘कमाल है! फ़िर ईश्वर ने मुंह किसलिए बनाया है?’
Munh
`Tum khaanaa kis tarah khaate ho?'
`Daayen haath se!'
`Kamaal hai! fir eeshwar ne munh kisliye banaayaa hai?'
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शादी
‘तुम्हारी शादी का मामला कहां तक पहुंचा?’
‘फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी पर अटका है।’
‘क्या मतलब?’
‘मतलब यह कि सखी, मेरे घर वाले तैयार हैं, लड़के वाले नहीं मान रहे।’
Shaadee
`Tumharee shadee kaa maamalaa kahaan tak pahunchaa?
`Fifty-fifty par atakaa hai.'
`Kyaa matalab?'
`Matalab yahee sakhee ki mere ghar waale taiyaar hain, ladake waale naheen maan rahe.'
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खाना
‘क्यों न आज रात का खाना तुम हमारे घर खाओ।’
‘नहीं भाई!’
‘क्यों, क्या परेशानी है?’
‘तुम्हें स्वर्गवासी रमेश की याद होगी...’
‘हां, मगर इस समय इस बात का क्या मतलब?’
‘तुम्हें यह भी याद होगा कि आखिरी बार उसने तुम्हारी पत्नी के हाथ का बना खाना खाया था...’
Khaanaa
`kyon na aaj raat kaa khaanaa tum hamaare ghar khaao.'
`Naheen bhaaee!'
`kyon, kyaa pareshaanee hai?'
`Tumhen swargwaasee Ramesh kee yaad hogee...'
`Haan, magar is samay ia baat kaa kyaa matalab?'
`Tumhen yah bhee yaad hogaa ki aakhiree baar usane tumhaaree patnee ke haath kaa banaa khaanaa khaayaa thaa.'
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जेल
‘बिना टिकट हो! कहां से चले आ रहो?’
‘सर, जेल से...’
‘अच्छा, जेल किसलिए गये थे?’
‘एक टीटी को ट्रेन से बाहर फ़ैंकने के ज़ुर्म में!’
Jel
‘Binaa tikat ho! kahaan se chale aa rahe ho?'
`Sar, jel se...'
`Achchhaa, jel kislie gaye the?'
`Ek TT ko train se baahar fainkane ke jurm men!'
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चोरी
‘तुमने थाने में ही चोरी कर डाली! तुम्हारा पकड़ा जाना तो तय था।’
‘हुज़ूर, मैं चाहता था कि यदि मैं पकड़ा जाऊं तो न मुझे और न ही पुलिस को ज्यादा पैदल चलना पड़े।’
Choree
`Tumane thaane men hee choree kar daalee! tumhaaraa pakadaa jaanaa to tay thaa.'
`Hujoor, mein chaahataa thaa ki yadi mein pakadaa jaaoon to na mujhe aur na hee pulis ko jyaadaa paidal chalanaa pade.'
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उधार
एक अजनबी को सामने देख राम लाल चौंक गये। वह बोला-आपको शायद याद होगा कि आपने कई साल पहले मुझे 500 रुपये देकर मेरी काफ़ी मदद की थी।
‘याद आया! आज क्या आप वे 500 रुपये लौटाने आये हैं?’ राम लाल उत्साहित होकर बोले।
‘ऐसी कोई बात नहीं, मैं इधर से गुज़्रर रहा था तो मैंने सोचा कि लगे हाथ 500 रुपये और ले लूं...।
Udhaar
Ek azanabee ko saamane dekh Raam Laal chaunk gaye. Wah bolaa-aapko shaayad yaad naheen hogaa ki aapane kaee saal pahale mujhe 500 Rupaye dekar meree kaafee madad kee thee.
`Yaad aayaa, aaj kyaa aap ve 500 Rupayr lautaane aaye hain?' raam Laal utsaahit hokar bole.
`Aisee koee baat naheen, main idhar se gujar rahaa thaa to meine sochaa ki lage haath 500 Rupaye aur le loon...'
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शेव
'आज तुमने शेव क्यों नहीं की ?'
'मेरा ख्याल है कि मैंने शेव की थी...पर दिक्कत यह थी कि एक ही शीशे के सामने हम छः लोग खड़े थे।'
'तो?'
'शायद मैंने किसी और की शेव कर दी!'
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दांत
'यह हाथ मटकाना और मुंह बिचकाना बंद करो... अभी तो मैंने दांत निकालना शुरू भी नहीं किया है!' डाक्टर ने कहा।
मरीज बोला,' दांत की ऐसी की तैसी, आप मेरे पैर पर खड़े हैं!
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पागल
दो महिलाएं बातें कर रहीं थीं। 'बहिन, यदि तुम्हें कभी कोई पागल काट ले तो तुम क्या करोगी?'
'तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे पति के बारे में ऐसा कहने की!' जवाब मिला।
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कार
बाबूजी की कार जल्दी-जल्दी ख़राब हो जाती थी। मिस्त्री बहुत परेशान था। वह बोला- 'साहब, अब आप नयी कार ले लीजिए। यह बहुत पुरानी भी हो गयी है...आयेदिन ख़राब हो जाती है।
''कैसी बातें करते हो!', बाबूजी बोले,' इतने रुपये मैं कहाँ से लाऊँ!' '
"फिर एक ही तरीका है बाबूजी।"
''वह क्या?"
"इसे बेचकर जितने रुपये मिलें उनमें कुछ और रुपये मिलाकर एक साइकल ले डालिए।" मिस्त्री ने सलाह दी।
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कॊक्रोच
पति-पत्नी होटल में खाना खा रहे थे।
"वेटर!"
"जी सर!''
"देखो, सब्जी में कॊक्रोच निकला है!''
"माफ़ कीजिए साहब, मैं आपको दूसरी सब्जी लाकर देता हूं।"
वेटर के जाने के बाद पास ही बैठे सज्जन बोले, "भाई साहब, एक कॊक्रोच और हो तो मुझे भी दे दीजिए..."
पति कुछ बोले उससे पहले पत्नी बोली,"आज हम एक ही कॊक्रोच लाए थे!"
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भाई साहब, बिजली और पानी
आख़िर मिलते किस मशीन से हैं? खबरिया- बिजली और पानी के बिल एक ही मशीन में जमा होंगे
Cartoon © TC Chander, 2008
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देश
गुरूजी गणित पढ़ा रहे थे-एक बड़ी नाव में 500 नेता सवार थे। नाव डूबने से 300 नेता डूब। बताओ क्या बचा?
एक छात्र- गुरूजी 200 नेता!
"शाबाश!" फ़िर गुरूजी बोले-वे बचे 200 नेता दूसरी नाव में सवार हुए। संयोग से नाव में बैठे सभी नेता डूब गए। अब क्या बचा? सभी छात्र जोर से बोले
-गुरूजी देश बच गया!
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पटरियां
कुछ उजड्ड किस्म के लोग रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे। काफी देर की चुप्पी के बाद एक ने बातचीत शुरू की-कहाँ जा रहे हो ?
'जहाँ गाड़ी ले जा रही है...''
"यह गाड़ी कहाँ जा रही है?''
"जहाँ इंजन ले जा रहा है...''
"इंजन कहाँ जा रहा है?''
"जहाँ पटरियाँ ले जा रहीं हैं।''
"और पटरियाँ कहाँ जा रही हैं?''
"मूरख, इतना भी नहीं जानता कि पटरियाँ भी कहीं जाती हैं?'
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युवाउमंग