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सोमवार, 17 मई 2010

स्वयंसेवा

अनाधिकार चेष्टा से रहें बचकर
अनाधिकार चेष्टा करने वाले व्यक्ति को प्रायः काफी नुकसान उठाने के बाद ही अक्ल आती है। अनाधिकार चेष्टा की अपनी गलती पर तब पछतावा होता है। निश्चय ही ऐसे प्रयास अन्ततः महंगे साबित होते हैं। यदि आपने अभी तक कोई छोटा-बड़ा नुकसान नहीं उठाया है और अपना रवैया बदल डालिए। किसी बड़े नुकसान के होने का इन्तजार मत कीजिए। आवश्यकता पड़ने पर हमेशा जानकार और योग्य व्यक्ति या सम्बन्धित कम्पनी की सेवाएं लीजिए। इस मन्त्र को अपनाने में ही भलाई है।
मेरे एक मित्र हैं। उनका जब कोई उपकरण, मशीन या अन्य चीज चलते-चलते रुक जाती है या काम करना बन्द कर देती है तो वे उसे लेकर बैठ जाते हैं। पेचकस-प्लास मिला तो ठीक वरना वे चाकू और रसोई में काम आने वाली सड़सी से भी भलीभांति कार्यकौशल दिखा देते हैं। उनके ऐसे प्रयासों का अन्त कैसा होता होगा, आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं। संयोग से कभी तुक्का लग गया तो उन्हें सफलता मिल जाती है और अपनी विशेषज्ञता के गर्व से उनका सीना फूल जाता है। वैसे ऐसा बहुत ही कम होता है। प्रायः यह विशेषज्ञता उन्हें अपनी जेब पर भारी ही पड़ती है। स्वयं को विभिन्न कामों में माहिर समझने के इस फेर में बहुमूल्य समय और धन बरबाद करने के साथ-साथ असुविधा झेलने वाले लोगों की कमी नहीं है।

किसी दुर्घटना के बाद, किसी के बीमार होने पर, कोई मशीन या वस्तु खराब होने पर या ऐसी ही अन्य विभिन्न स्थितियों में अनेकानेक परामर्शदाता और विशेषज्ञ अपनी राय देने लगते हैं या मरम्मत-उपचार के प्रयास करने लगते हैं। यह अनाधिकार चेष्टा ही है। इससे प्रायः अस्थायी या स्थायी रूप से नुकसान ही हासिल होता है। हर फ़न में माहिर होना सम्भव नहीं होता। किसी दुर्घटना में घायल व्यक्ति को बैठने मत दीजिए और उसे सावधानी से किसी वाहन में लिटाकर यथाशीघ्र अस्पताल पहुचाने का प्रबन्ध कीजिए।

किसी बीमार को देखने जाएं तो उसे अपनी चिकित्सकीय सलाह मत दीजिए, किसी परहेज, मालिश, किसी टॉनिक आदि के सेवन के लिए जोर मत दीजिए। हो सकता है कोई परेशान व्यक्ति या उसका परिजन आपकी बात मानकर व्यवहार में लाए और रोगी को किसी प्रकार का नुकसान उठाना पड़ जाए। आप सिर्फ उसका हालचाल पूछिए, उसकी हिम्मत बढ़ाइए और यदि उसे किसी प्रकार की मदद की जरूरत है तो यथासम्भव मदद कीजिए पर उसके भूलकर भी उसके डॉक्टर मत बनिए।

जब कोई उपकरण, मशीन या वस्तु खराब हो जाए तो स्वयं मिस्त्री या इंजीनियर मत बनिए। उसे उपयुक्त व्यक्ति के पास ले जाइए। सम्भव है उसमें कोई मामूली खराबी आ गयी हो और यह भी सम्भव है कि आपके प्रयास करने से वह बड़ी खराबी में बदल जाए जिसमें अधिक समय और पैसे लगें। सच मानिए, अनेक बार ऐसा ही होता है। हर बार तुक्का काम नहीं करता। जिस कार्य के बारे में आप नहीं जानते उसमें कुशलता हासिल करने के लिए उस कार्य को पहले सीखना, अभ्यास करना और अनुभव प्राप्त करना जरूरी होता है। जरा सोचिए, आप कितने कार्य सीखिंगे! अच्छा यही है कि आप सिर्फ अपना काम कीजिए और दूसरों को अपना काम करने दीजिए। अनाधिकार चष्टा मत कीजिए।

अनाधिकार चेष्टा करने वाले व्यक्ति को प्रायः काफी नुकसान उठाने के बाद ही अक्ल आती है। अनाधिकार चेष्टा की अपनी गलती पर तब पछतावा होता है। निश्चय ही ऐसे प्रयास अन्ततः महंगे साबित होते हैं। यदि आपने अभी तक कोई छोटा-बड़ा नुकसान नहीं उठाया है और अपना रवैया बदल डालिए। किसी बड़े नुकसान के होने का इन्तजार मत कीजिए। आवश्यकता पड़ने पर हमेशा जानकार और योग्य व्यक्ति या सम्बन्धित कम्पनी की सेवाएं लीजिए। इस मन्त्र को अपनाने में ही भलाई है।

एक बात और, जिस बात के बारे में आप स्वयं आश्वस्त या निश्चिन्त नहीं हैं, उसे आप मत कहिए। अपनी बात की औरों पर होने वाली प्रतिक्रिया का अनुमान लगाइए, बुद्धिमानी से काम लीजिए। अनेक परिस्थितयों में आपका मौन आपका और औरों का भला ही करेगा। यह बात सच है कि लोगों के साथ व्यवहार करना एक कठिन काम है। इस काम को बड़ी आसानी से आसान बनाया जा सकता है। चतुराई और सहनशीलता व्यवहार में लाएं। पर निन्दा और अप्रिय बातें न करें। अपने हृदय को निर्मल बनाएं, लोगों के अच्छे व्यवहार और गुणों की प्रशंसा करें, विनम्र बनें और भूलकर भी अनाधिकार चेष्टा न करें। निश्चिन्त रहिए, आप कभी घाटे में नहीं रहेंगे।

टी.सी. चन्दर  /प्रभासाक्षी
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