युवाउमंग में पढ़िए
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किस्मत के भरोसे कुछ हासिल नहीं होता परिश्रम और लगन का कोई विकल्प नहीं होता। असफलता को भूल जाना और उससे सबक लेकर आगे बढ़ना ही अच्छा होगा...
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महर्षि दयानन्द को नमन (187वां जन्मोत्सव, 27 फ़रवरी 2011) दयानन्द जी ने गौ हत्या का दृढ़ता से विरोध किया। अपनी पुस्तक ‘गौ करुणानिधि’ में स्...
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कार्टूनिस्ट बनकर कमाइए धन और यश अनेक लोगों के मस्तिष्क में कार्टून बनाने लायक विचार प्रायः आते रहते हैं। चूंकि वे कार्टून ...
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विवेक जाग्रत होने पर मिलता है सुख विवेक के अभाव में हम अपने कर्त्तव्यों का भलीभांति पालन नहीं कर पाते। अपनी इच्छाओं और वासनाओं के वशीभूत होक...
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एक था शनिवार कला मेला • टी.सी. चन्दर सन् 1982 में दिल्ली में आयोजित हुए एशियाई खेलों के चक्कर में सुरक्षा व्यवस्था के चलते प्रशासन को बहान...
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आप अपने रचे/सुने/पढे़ बढ़िया चुटकुले हिन्दी/रोमन/अंग्रेजी में ई-मेल द्वारा भेजें। इससे और अधिक आनन्द चारों ओर फ़ैलेगा। अपना नाम और स्थान अवश...
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गुलामी स्मृति खेलों ने शेर को बनाया बाघ गुलामी स्मृति खेलों के शुभंकर या मस्कट शेरा या शेर को देखिए, वह शेर है ही नहीं अपितु बाघ या व्याघ्...
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गर्मी के मौसम में अपनाएं गुणकारी शर्बत गर्मी के मौसम के दस्तक देने से पहले ही शीतल पेय निर्माता विशेष रूप से बच्चों की कोमल भावनाओं को ध्यान...
गुरुवार, 24 जुलाई 2008
विविध
संजय तिवारी सौजन्य: www.visfot.com
कोई 200 से ज्यादा कालेज या विश्वविद्यालय ऐसे हैं जो यूजीसी द्वारा मान्यता लेकर पत्रकारिता की पढ़ाई करवा रहे हैं. इसके अलावा लगभग 500 अन्य संस्थान हैं जो अपने दम पर पत्रकारिता की डिग्री बांट रहे हैं. लेकिन चौंकानेवाली बात यह है कि पत्रकारिता के संस्थान संख्या में जितने बढ़े हैं पत्रकारिता में उसी अनुपात में गिरावट आयी है. इन दोनों बातों का कोई संयोग होगा ऐसा नहीं कह सकते लेकिन पत्रकारिता को पढ़ाई बनानेवाली मानसिकता के बारे में आप जरूर सवाल कर सकते हैं. दुनिया में दो तरह की विचारधाराएं काम करती हैं. एक जो विकेन्द्रीकरण और वास्तविक लोकतंत्र में विश्वास करती है और दूसरी वह जो केन्द्रीकृत व्यवस्था को पसंद करती है और छद्म लोकतंत्र के सहारे अपना विस्तार करती है.
आजकल इसी छद्म लोकतांत्रिक प्रणाली का जोर है. अपने मूल में यह न केवल अति केन्द्रित है बल्कि यह प्रणाली कुछ लोगों की इच्छाओं का विस्तार मात्र है. आज व्यापार से लेकर शिक्षा तक जो कुछ हमारे सामने दिखाई दे रहा है वह इसी केन्द्रित प्रणाली से उपजा है. इसलिए जब से भूमंडलीकरण का दौर शुरू हुआ उसके बाद ही पेशेवर पढ़ाई पर जोर अचानक बहुत बढ़ गया. इतना बढ़ गया कि हमने यह कल्पना करना ही छोड़ दिया कि एजूकेशन एक सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था है और यह व्यक्ति की निजी अभिरुचि और स्वभाव के अनुसार एक स्वाभाविक प्रक्रिया में ढलता है. लेकिन दुनिया की केन्द्रीय प्रणाली ऐसा नहीं मानती. उसका मानना है कि परिवार और समाज जैसी कोई व्यवस्था हो ही नहीं सकती इसलिए जो कुछ करना है वह या तो राज्य करे या फिर बाजार उसे अपने मुताबिक करेगा.
भूमंडलीकरण के कारण पैसा बढ़ गया हो ऐसा नहीं है. हां, पैसे का चलन बढ़ गया है. पैसा ऐसी मदों पर खर्च होने लगा है जिनके बारे में कल तक हम सोच भी नहीं सकते थे. इसे पूंजी का फैलाव भी कह सकते हैं. पूंजी का यह फैलाव जैसे-जैसे बढ़ रहा है वैसे-वैसे परिवार नाम की इकाई टूट रही है. परिवार नाम की यह इकाई अकेले नहीं टूटती. इस टूटन का असर समाज और उसकी व्यवस्थाओं पर भी होता है. आर्थिक प्रणाली बदल गयी. रोजी-रोजगार के तरीकों में व्यापक फेरबदल चल रहा है. और यह फेरबदल इतना तेज है कि परिणाम पाने के लिए कोई एक शताब्दी का इंतजार नहीं करना होता. बदलाव के लिए एक दशक बहुत बड़ा समय का अंतराल होता है.
जब रोजी-रोजगार, जीवनशैली, जरूरतें और समस्याओं ने अपना स्वरूप बदल लिया तो पत्रकारिता से यह उम्मीद करना कि वह पुराने तरीकों और उपकरणों से अपना काम करती रहे, यह थोड़ा ज्यादती होती. नये तरह की पत्रकारिता की जरूरत ने लोगों के मन में यह बैठा दिया कि पत्रकारिता भी वैसा ही प्रोफेशनल कोर्स होना चाहिए जैसे कि कोई एमबीए या फिर बीसीए, एमसीए. यह मानसिकता एकांगी नहीं बनी. इस मानसिकता के पीछे हमारी आर्थिक प्रणाली में आये व्यापक बदलाव थे जिनका समाज पर असर हो रहा था. अब पत्रकारिता करनेवाले अखबारों की जरूरत शायद नहीं रह गयी है. अब सूचना देने वाले ऐसे माध्यमों की आवश्यकता है जो समाज के टूटते रिश्तों के बीच संवाद का काम कर सकें. ज्ञान और जानकारियों के रीते होते सामाजिक गागर में सूचनाओं से लबालब औजार चाहिए अखबार नहीं. जाहिर है ऐसे में पत्रकारिता की पुरानी अवधारणा को तो बिखरना ही था.
अब पत्रकारिता मीडिया वर्किंग में तब्दील हो गयी है. पत्रकार भी धीरे-धीरे मीडिया वर्कर के रूप में बदलते जा रहे हैं. पुरानी पीढ़ी के कुछ लोग जब तक हैं तब तक विरोध के छुट-पुट स्वर सुनाई देते रहेंगे. लेकिन ऐसे स्वर कोई लंबे समय तक नहीं रहने वाले. संस्थानों में फीस भरकर जो युवक/युवती मीडिया में पहुंचता है वह सीखनेवाला नहीं बल्कि सिखानेवाली मानसिकता से पहुंचता है. उसे लगता है कि उसने अपना कोर्स पूरा कर लिया अब सीखने को है क्या? अपने से थोड़ा भी ऊपर कोई है तो वह उसे बेदखल करके अपनी नयी सोच को स्थापित करना चाहता है. इसमें अन्यथा कुछ भी नहीं है. पेशेवर शिक्षा का यह अनिवार्य दोष है. जब हम किताबी पढ़ाई को व्यावहारिक ज्ञान के ऊपर हावी करने लगते हैं तो केवल ज्ञान ही पीछे नहीं छूटता पूरी प्रणाली आपदाग्रस्त हो जाती है.
मीडिया वर्करों की बढ़ती फौज के बीच किसी दिन पत्रकारिता की अर्थी निकल जाए तो इसमें हैरान होने की जरूरत नहीं है. वैसे भी अब इंजीनियरिंग, विज्ञान, वाणिज्य, कला सब कुछ तो स्कूलों कालेजों के भरोसे ही चल रहा है. कितने लोगों को इस बात का अंदाज होगा कि स्कूल ही शिक्षा के एकमात्र माध्यम नहीं होते. यह बात थोड़ी अटपटी लग सकती है लेकिन उन्नत समाज में स्कूल नहीं होते. स्कूल तो निम्नतर समाज के लिए जरूरी हैं. उन्नत समाज परंपरा में जीता है. वह अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी परंपरा में आविष्कार और परित्याग दोनों का समावेश रखता है. संयोग से भारत ऐसा ही देश रहा है. यहां पढ़ाई से नहीं बल्कि प्रतिभा से पेशे के चयन की आजादी रही है. लेकिन जब पूरा समाज ही भ्रंस पर जा खड़ा हुआ हो तो पत्रकारिता में पढ़ाई और पढ़ाई से पैदा हुए क्षरण को कोई रोक नहीं सकता.
इस बात को समझना होगा कि पत्रकारिता में आये क्षरण का एक बड़ा कारण पत्रकारिता की पढ़ाई भी है. आज कोई समझे न समझे एक दिन इस बात का अंदाज लोगों को होगा. पत्रकारिता संस्थानों से जितना पढ़ा-लिखा मीडिया वर्कर निकलता है उससे ज्यादा प्रतिभावान लोग बाहर ही रह जाते हैं. वैसे भी पढ़ने पर जो पैसा खर्च करता है उसे उस पैसे का रिटर्न चाहिए. जिन्हें पत्रकारिता करनी हो वो करें. मीडिया संस्थानों से निकलनेवाले लड़कों को नौकरी और स्टार रिपोर्टर का तमगा मिनट भर के अंदर चाहिए. कोई अपवाद होगा तो कह नहीं सकते लेकिन ज्यादातर लोगों में यही प्रवृत्ति होती है. वैसे भी 2012 तक मीडिया इंडस्ट्री एक लाख करोड़ का धंधा होगी. उस धंधे को चलाए रखने के लिए बाजार को इंसानी उपकरण चाहिए पत्रकार नहीं, इसलिए बड़ा सवाल तो यह है कि क्या पत्रकारिता जैसी बातें उसके बाद भी जीवित रहेंगी?
विस्फोट फोरम में भी यह बहस उपलब्ध है जहां आप अपने विचार रख सकते हैं।
09 June, 2008
प्रस्तुति: टी.सी. चन्दर
सोमवार, 26 मई 2008
खानपान
गर्मी के मौसम में अपनाएं गुणकारी शर्बत
गर्मी के मौसम के दस्तक देने से पहले ही शीतल पेय निर्माता विशेष रूप से बच्चों की कोमल भावनाओं को ध्यान में रखकर कुटिलतापूर्ण विज्ञापन अभियान शुरू कर देते हैं। इन विज्ञापन अभियानों को लुभावना और प्रभावशाली बनाने के लिए मुहमांगी कीमत पर लोकप्रिय फिल्मी सितारों या क्रिकेट खिलाड़ियों को अनुबन्धित कर लेते हैं। धन के लालच के वशीभूत ये लोकप्रिय हस्तियां अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए लोगों की भावनाओं का शोषण करती हैं। वे अपने इस कुकृत्य से देशवासियों और देश का बहुत बड़ा नुकसान करते हैं, वह भी पूरे होशोहवास में और सोचसमझकर।
भारीभरकम विज्ञापन बजट वाले गैर जरूरी तथाकथित तूफानी ठण्डे पेयों के लुभावने और हमारा स्टेटस तय करने वाले प्रिंट तथा इलैक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से पेश किए जाने वाले विज्ञापन अभियानों ने बहुत नुकसान किया है। दूषित और हानिकारक रासायनिक पदार्थों से तैयार किए गये अनेक शीतल पेय बाजार में टिके रहने के लिए भारी मारामारी कर रहे हैं। लोग झूठी छवि और आधुनिक दिखने के फेर में भ्रमित हो इन घटिया शीतल पेयों को मुंह से लगाए हुए हैं। यहां के लोगों को अपने रहस्यमय फार्मूलों से तैयार किये गए शीतल पेयों का आदी बनाने में अनेक भारतीय और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां एकदूसरे से होड़ में लगी हुई हैं। इस होड़ का बच्चे आसान शिकार हो रहे हैं जबकि ये शीतल पेय बच्चों की हड्डियों, सम्पूर्ण स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके शारीरिक और मानसिक विकास की दृष्टि से हितकर नहीं हैं।
अपने-अपने शीतल पेयों का बाजार बढ़ाने में जुटी इन कम्पनियों का जन स्वास्थ्य से कोई सरोकार नहीं है और न ही सरकार को इससे कुछ लेनादेना है। हमें ही इस मामले में पहल कर अपना और बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सही कदम उठाने की पहल करनी चाहिए। इन हानिकारक पेयों का उपयोग स्वयं एकदम बन्द करते हए बच्चों को भी प्रेरित करना होगा। दावतों में इनके उपयोग से विशेष रूप से बचना होगा। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले इन शीतल पेयों में उपस्थित कीटनाशकों की बात जाहिर होने पर काफी हंगामा मचा था। दक्षिण भारत में किसानों ने अपनी फसल की कीटों से बचाव के लिए इन्हीं शीतल पेयों का उपयोग किया और इन्हैं काफी कारगर पाया। कीमत की दृष्टि से ये कीटनाशक काफी सस्ते सिद्ध हुए। अनेक लागों ने इन शीतल पेयों का उपयोग अपने घर के शौचालय और स्नानघर साफकर चमकाने में किया और उन्हैं सुखद परिणाम मिले।
दरअसल ये शीतल पेय बर्फ या फ्रिज में रखे जाने के कारण ठंडक का सिर्फ एहसास या भ्रम पैदा करते हैं, वास्तव में किसी भी प्रकार से ये गुणकारी या शरीर को आंतरिक रूप से तरावट, राहत या ठंडक प्रदान करने वाले पेय नहीं हैं। यही नहीं, इनका सेवन करने-कराने के फेर में जेब से भी काफी धन खर्च हो जाता है और वह भी बिना किसी लाभ के। अनेक लोग व्रत-उपवास में इन पेयों का सेवन करते हैं जो ठीक नहीं है। इन शीतल पेयों में घटिया रंग, रसायन आदि का उपयोग किया जाता है, बोतलों की सफाई भी संदिग्ध होती है और निर्माण तिथि का भी सही पता नहीं होता। इन शीतल पेयों में पशुओं की हड्डी, चर्बी, रक्त आदि के उपयोग को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। कृत्रिम सस्ती मिठास, रंग, कैंसर कारक ब्रोमिनेटेड वेजीटेबल ओयल (बी.वी.ओ.) आदि के चलते ये पेय किसी भी स्थिति में मानव के लिए निरापद नहीं कहे जा सकते। कुछ समय पहले हमारे देश में बी.वी.ओ. को लेकर काफी शोर मचा था। सरकार ने इसके प्रयोग पर रोक भी लगा दी थी पर हमारे यहां भ्रष्टाचार और प्रशासनिक सुस्ती के चलते कुछ भी चलता रह सकता है। आम आदमी के पास खा़ पदार्थों की जोच-पड़ताल का कोई तरीका ही नहीं है इस प्रकार इन पेयों पर रत्तीभर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। शीतल पेय निर्माता अपने असीमित लाभ की खतिर कुछ भी कर सकते हैं और वे सक्षम हैं।
गर्मी के मौसम के दस्तक देने से पहले ही शीतल पेय निर्माता विशेष रूप से बच्चों की कोमल भावनाओं को ध्यान में रखकर कुटिलतापूर्ण विज्ञापन अभियान शुरू कर देते हैं। इन विज्ञापन अभियानों को लुभावना और प्रभावशाली बनाने के लिए मुहमांगी कीमत पर लोकप्रिय फिल्मी सितारों या क्रिकेट खिलाड़ियों को अनुबन्धित कर लेते हैं। धन के लालच के वशीभूत ये लोकप्रिय हस्तियां अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए लोगों की भावनाओं का शोषण करती हैं। वे अपने इस कुकृत्य से देशवासियों और देश का बहुत बड़ा नुकसान करते हैं, वह भी पूरे होशोहवास में और सोचसमझकर।
अब हमें स्वयं अपना और अपने नौनिहालों के हित को ध्यान में रखते हुए सही तरीका अपनाना चहिए जिससे हमारी जेब भी हलकी न हो और गुणकारी शीतल पेयों के उपयोग से स्वास्थ्य को लाभ भी मिले। घर या बाहर रहते हुए हम ऐसे शीतल पेय अपना सकते हैं जो मूल्य की दृष्टि से मंहगे नहीं पड़ते और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं। इनमें से एकाधिक शीतल पेय तैयार किए-कराए जा सकते हैं। ठंडक और ताजगी देने वाले ये पेय आसानी से तैयार हो जाते हैं। कुछ गुणकारी शर्बत या शीतल पेय बनाने की विधियां यहां प्रस्तुत हैं-
नींबू का शर्बत या शिकंजी- आसानी से उपलब्ध नींबू के गुणों से सभी परिचित हैं। मध्यम आकार के पतले छिलके वाले 20 नींबुओं का रस निकालकर उसमें 500 ग्राम मिश्री मिलाकर गाढ़ा होने तक उबालें और ठंडा होने पर कांच की बोतल में भरकर रख दें और आवशयअकतानुसार पानी और बर्फ मिलाकर पिएं-पिलाएं। नींबू की शिकंजी भोजन में अरुचि, मंदाग्नि, उल्टी, पिŸा जनित सिरदर्द आदि में लाभदायक होने के साथ-साथ भूख भी बढ़ाती है।
गुलाब का शर्बत- गुलाबजल या गुलाब की पंखुड़ियोँ से निकाले गये अर्क में मिश्री डालकर उसका पाक बना लें और आवश्याकता पड़ने पर ठंडा पानी मिलाकर पिएं-पिलाएं। यह शर्बत सुगंधित होने के साथ-साथ शरीर की गर्मी को भी नष्ट करता है। गर्मी के मौसम में यह एक अच्छा स्वास्थ्यकर पेय है।
इमली का शर्बत- साफ और अच्छी इमली 1 किग्रा. लेकर 2 लीटर पानी में एक पत्थर या चीनी मिट्टी के बर्तन में 12 घंटे के लिए पतले कपड़ से ढंककर छोड़ दें। फिर इमली को साफ हाथों से मसल-मसलकर पानी के साथ् एकरस कर लें और बीजों को निकाल दें। अब स्टेनलैस स्टील के बर्तन में छानकर उबाल आने तक गर्म करें। इसके बाद 750 ग्राम चीनी डाल दें। 3 तार की चाशनी बनने पर आग से उतार कर ठंडी होने दें। इसे चौड़े मुंह की कांच की बोतल या बर्तन में भरकर रख दें। आवश्यकता होने पर उपयुक्त मात्रा लेकर उसमें ठंडा पानी और बर्फ मिलाकर उपयोग में लाएं।
यह शर्बत कब्ज और पित्त में लाभ पहुंचाता है। गर्मी के दिनों में सुबह पीने से लू लगने का डर नहीं रहता।
इमली की ही तरह कैथ (कबीट) का शर्बत भी बनाया जा सकता है। यह शर्बत शरीर की गर्मी, पित्त शामक और रुचिकर होता है।
मुनक्का का शर्बत- मुनक्के 250 ग्राम मात्रा में लेकर उनके बीज निकाल लें और नींबू या बिजौरे (बड़े खट्टे नींबू) के रस में पीस लें। उसमें लगभग 100 मिली. अनार का रस मिला दें। अब उसमें स्वादानुसार काला नमक, पिसी इलायची, पिसी काली मिर्च, भुना पिसा जीरा, थोड़ी पिसी दालचीनी व अजवायन डालकर उसमें 200-250 ग्राम शहद भलीभांति मिला दें। आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर उपयोग में लाएं।
यह शर्बत मंदाग्नि और अरुचि में अत्यंत गुणकारी होता है।
कच्चे आम का शर्बत या पना- पना बनाने के लिए कच्चे आम या अमिया छीलकर पानी में उबाल लें फिर ठंडे पानी में अमिया मसलकर एकसार कर लें। इसमें स्वादानुसार काला नमक, सादा नमक, भुना पिसा जीरा और चीनी मिलाकर पिएं। इसमें कुटी बर्फ मिलाई जा सकती है। गर्मी से राहत दिलाने वाला यह शर्बत स्वास्थ्य के लिए गुणकारी और बढ़िया पेय है। यह प्रचीन भारतीय परम्परागत स्वादिष्ट पेय है।
अनार का शर्बत- अच्छी तरह पके 20 अनारों के दाने निकालकर उनका रस निकाल लें। इस रस में 50-60 ग्राम कद्दूकस किया हुआ अदरक मिलाकर उबाल लें। चाहें तो इसमें थोड़ी चीनी मिला लें। गाढ़ा होने पर उसमें 3-4 पिसी इलायची और थोड़ी-सी केसर मिलाकर कांच की शीशी में भरकर रख लें और आवश्यकतानुसार थोड़ा पानी व कुटी बर्फ मिलाकर पिएं-पिलाएं। यह शर्बत पित्त नाशक होता है अतः दवा के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। गर्मी के मौसम में यह काफी राहत देता है।
लस्सी- ताजा दही में स्वादानुसार चीनी, ठंडा पानी, कुटी बर्फ, पिसी इलायची या गुलाब जल या कुवड़ा या किसी बोतलबन्द शर्बत की कुछ बूंदें मिलाकर लस्सी बनाकर पिएं-पिलाएं। इसमें चाहें तो थोड़ा दूध भी मिला सकते हैं। मीठी लस्सी की ही भांति नमकीन लस्सी भी बनाई जा सकती है। ताजा दही लेकर उसमें स्वादानुसार थोड़ सादा नमक, काला नमक, भुना पिसा जीरा, कुटी बर्फ और उपलब्ध हो तो कुछ पोदीने की हरी या सूखी पत्तियां पीसकर डाल दें। थोड़ी पिसी काली मिर्च भी डाली जा सकती है। शानदार स्वादिष्ट और गुणकारी पेय यानी लस्सी तैयार है। यह लस्सी शरीर में उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी को नियन्त्रित करती है। लस्सी पीने के बाद कुछ देर तक पानी नहीं पीना चाहिए।
दूध का शर्बत थोड़े दूध में जरा सी पिसी या साबुत सौंफ उबाल लें। उसमें और दूध तथा पानी मिलाकर सही मात्रा में चीनी डालकर मिला लें। अब इसे छान लें और कुटी बर्फ डालकर पियें-पिलाएं।
बराबर मात्रा में दूध और पानी लेकर उसमें मिश्री या शहद मिलाकर बनाया शर्बत पिएं-पिलाएं। इससे शरीर को पर्याप्त राहत मिलती है। जो लोग गर्मी के मौसम में भी दिन में कई बार चाय पीने के शौकीन हैं उनके लिए यह पेय आदर्श है।
सत्तू- गेहूँ, चना, चावल और जौ को बराबर मात्रा में सेंककर या भुनवाकर पीसकर एक साफ बरतन या मर्तवान में भरकर ढंककर रख लें। गर्मी की दोपहर में एक-दो चम्मच यह सत्तू लेकर उसमें पानी या दूध और मिश्री या चीनी मिलाकर ठंडा करके या बर्फ डालकर पिएं। सत्तू के सेवन से थकावट दूर होती है, ताजगी और शक्ति मिलती है। सत्तू का उपयोग भोजन के 2 घंटे पहले या बाद ही करना चाहिए। सत्तू को पतला बनाकर पीना ही अच्छा होता है। इसका अधिक मात्रा में और रात के समय सेवन करना आयुर्वेद के अनुसार ठीक नहीं।
इसी प्रकार आम, तरबूज, खरबूज, बेल, अंगूर आदि ताजा फलों को पानी में मसलकर या उनके रस भी शीतल पेय के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं।
अब इस गर्मी के मौसम में बोतलबन्द घातक कार्बोनेटेड नकली शी
टी सी चन्दर/www.prabhasakshi.com
शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008
तकनीक
अनगिनत युवा नेट सर्फिंग और चैटिंग करते हैं। इस आधुनिक तकनीक ने मनोरंजन, गपशप और देश-विदेश में दोस्त बनाना भी बेहद आसान बना दिया है। अधिकांश किशोर और युवा विपरीत लिंगी से (भले ही वे एक दूसरे से झूठ बोल रहे हों) मैत्री कर जमकर चैटिंग का आनन्द लेते हैं। इस नयी पीढ़ी के तमाम लोगों के लिए चैटिंग दिचर्या का ही अंग बन गयी है।
सर्फिंग और चैटिंग हैकिंग के चलते कभी भी परेशानी का कारण बन सकते हैं। आजकल हैकिंग का जोर काफी बढ़ रहा है। नयी तकनीक की जानकारी रखने वाले किसी भी शरारती या शातिर दिमाग वाले व्यक्ति के लिए हैकिंग बहुत आसान कार्य है। हैकिंग के लिए किसी विशेष योग्यता या क्षमता की आवश्यकता नहीं होती।
आईटी एक्ट के अनुसार किसी के निजी ई-मेल पढ़ना एक अपराध है। हांलाकि व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा के चलते हैकिंग कार्पोरेट जगत में एक व्यवस्थित अपराध बन गयी है। हैकरों को 2 नामों से जाना जाता है-व्हाइट हैट और ब्लैक हैट हैकर। बड़ी-बड़ी कम्पनियां अपने सुरक्षा तन्त्र को मजबूत बनाये रखने के लिए एथिकल एक्सपर्ट व्हाइट हैट हैकर नियुक्त करती हैं। ये किसी साइबर अपराध में शामिल नहीं होते अपितु साइबर अपराधों का पता लगाने और उनकी रोकथाम में मदद करते हैं। ज्यादातर मामलों में उत्सुकता और कुछ करके देखने के मजे लेने की इच्छा के कारण किशोर और युवा जाने-अनजाने इस अपराध कर्म के सहयोगी बन जाते हैं।
किशोर और युवा वर्ग हैकिंग का स्वयं आसानी से शिकार बन जाता है। हैकिंग के क्षेत्र के उस्ताद तरह-तरह के प्रलोभन से किशोर और युवा वर्ग को अपने जाल में फंसाते हैं। गेमिंग और चैटिंग आज के बहुत आकर्षक क्षेत्र हैं। एक अन्य आकर्षण है पोर्न साइट्स। इन साइट्स के होम पेज व कुछ अन्य हिस्सों में दी गयी सामग्री, चित्रों या वीडियो क्लिपिंग को देखकर किशोर और युवा ही नहीं बड़े भी कुछ और देखने के लिए इनके आकर्षण में फंस जाते हैं। इन साइट्स की सदस्यता के बहाने लोगों से अन्य विवरण के साथ-साथ क्रेडिट कार्ड, बैंक खाते आदि के बारे में आवश्यक जानकारी भी प्राप्त कर ली जाती है। चैटिंग के जरिए भी हैकर चैट रूम में प्रवेश कर उपयोक्ता को धीरे-धीरे विश्वास में लेकर अपने काम की जानकारी ले लेते हैं। इस जानकारी का उपयोग हैकर अपने हित में और उपयोक्ता को नुकसान पहुंचाने के लिए करते हैं।
हैकिंग से बचने के लिए उपयोक्ता को स्वयं ही सावधान रहने की जरूरत है। साथ ही इसके लिए हर स्तर पर सावधानी बरतना आवश्यक है। स्कूल-कालेजों में सिक्योरिटी नार्म्स को अपनाया जा रहा है। शिक्षा संस्थानों के अलावा सरकार द्वारा अपने स्तर पर आवश्यक कदम उठाया जाना भी जरूरी है। उपयोक्ता और अभिभावकों को भी सावधान रहने की जरूरत है। अभिभावकों को बच्चों के द्वारा की गयी नेट सर्फिंग पर नजर रखना चाहिए। हालांकि साइबर कैफे आदि के उपयोग को देखते ऐसा कर पाना काफी मुश्किल है। इन्टरनेट के तेजी से होते प्रसार और अच्छी बैंडविड्थ की सुविधा ने निःसंदेह जागरूक अभिभावकों के माथे पर पिंता की एक और लकीर बढ़ा दी है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि आज के भागमभाग के समय में अधिकांश सक्षम अभिभावकों के पास बच्चों की आर्थिक जरूरतों की पूर्ति के अलावा उनके लिए समय ही नहीं है। कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है कि इंटरनेट पर महत्वपूर्ण निजी जानकारियां, फोटो आदि, जिनसे कोई आपको आर्थिक हानि पहुंचा सके या ब्लैमेल कर सके, देने से बचना चाहिए। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की नेट सर्फिंग पर नजर रखें। नियमित रूप से सर्फिंग के दौरान विजिट की गयी साइट्स की जांच करते रहना चाहिए। हैकिंग के बारे में बताते हुए उन्हें सावधान रहने की हिदायत देना भी जरूरी है।
हैकिंग से बचने के लिए बच्चों को ही नहीं बड़ों को भी प्रशिक्षित किया जाना जरूरी हो गया है। हैकिंग के विरुद्ध आवश्यक कानून बनाने की भी जरूरत है। हैकर की पहचान करना साइबर क्राइम विशेषज्ञों के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है पर इस अपराध के लिए बड़ी सजा का प्रावधान नहीं है। विशेष रूप से अवयस्क हैकिंग अपराधियों को चेतावनी और मामूली सजा दी जाती है।
रविवार, 13 अप्रैल 2008
करियर Career
वीडियो सम्पादन के क्षेत्र में कुशल और अनुभवी वीडियो सम्पादक की सदा मांग रह्ती है। वीडियो सम्पादक ही वह व्यक्ति होता है जो कहानी के अनुसार समझदारी से शूट किये या फ़िल्माए गये दृश्यों को सही ढंग से या सिलसिलेवार ढंग से जोड़कर वांछित फ़िल्म बनाता है।
कम्प्यूटर का प्रयोग लगभग हर क्षेत्र में प्रमुखता से हो रहा है। नये-नये उपयोगी साफ़्टवेयरों का प्रयोग कर सम्बन्धित कार्य को और बेहतर ढंग से किया जा रहा है। अन्य क्षेत्रों की भांति वीडियो सम्पादन के क्षेत्र में भी कम्प्यूटर का उपयोग खूब किया जा रहा है। किसी विषय को लेकर शूट की गयी फ़िल्म को ऐसे ही प्रस्तुत नहीं किया जाता। हमारे सामने जो फ़िल्म आती है उसके पीछे कुशल सम्पादन की भूमिका काफ़ी महत्वपूर्ण होती है।
शूट किये गये दृश्य प्रायः सिलसिलेवार ढंग से नहीं फ़िल्माए जाते। कथा-पटकथा के विभिन्न भागों को ध्यान में रखते हुए ज्यादातर मामलों में आवश्यकता और सुविधानुसार ही दृश्यों को फ़िल्मा लिया जाता है। इसके बाद वीडियो सम्पादन का कार्य शुरू होता है। फ़िल्म निर्माण में जुटे लगभग सभी प्रतिष्ठानों और टीवी चैनलों में अब नान लीनियर सम्पादन सिखाया जाता है।
रविवार, 24 फ़रवरी 2008
युवाउमंग
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किस्मत के भरोसे कुछ हासिल नहीं होता परिश्रम और लगन का कोई विकल्प नहीं होता। असफलता को भूल जाना और उससे सबक लेकर आगे बढ़ना ही अच्छा होगा...
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महर्षि दयानन्द को नमन (187वां जन्मोत्सव, 27 फ़रवरी 2011) दयानन्द जी ने गौ हत्या का दृढ़ता से विरोध किया। अपनी पुस्तक ‘गौ करुणानिधि’ में स्...
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कार्टूनिस्ट बनकर कमाइए धन और यश अनेक लोगों के मस्तिष्क में कार्टून बनाने लायक विचार प्रायः आते रहते हैं। चूंकि वे कार्टून ...
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विवेक जाग्रत होने पर मिलता है सुख विवेक के अभाव में हम अपने कर्त्तव्यों का भलीभांति पालन नहीं कर पाते। अपनी इच्छाओं और वासनाओं के वशीभूत होक...
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एक था शनिवार कला मेला • टी.सी. चन्दर सन् 1982 में दिल्ली में आयोजित हुए एशियाई खेलों के चक्कर में सुरक्षा व्यवस्था के चलते प्रशासन को बहान...
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आप अपने रचे/सुने/पढे़ बढ़िया चुटकुले हिन्दी/रोमन/अंग्रेजी में ई-मेल द्वारा भेजें। इससे और अधिक आनन्द चारों ओर फ़ैलेगा। अपना नाम और स्थान अवश...
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गुलामी स्मृति खेलों ने शेर को बनाया बाघ गुलामी स्मृति खेलों के शुभंकर या मस्कट शेरा या शेर को देखिए, वह शेर है ही नहीं अपितु बाघ या व्याघ्...
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गर्मी के मौसम में अपनाएं गुणकारी शर्बत गर्मी के मौसम के दस्तक देने से पहले ही शीतल पेय निर्माता विशेष रूप से बच्चों की कोमल भावनाओं को ध्यान...